Thursday, November 26, 2020

सामा-चकेबा : भाई-बहन के स्नेह का अनूठा त्योहार

सामा-चकेबा मिथिला का एक बहुत ही अनोखा त्योहार है। भाई-बहन के बीच के स्नेह और समर्पण को दर्शाने वाला यह त्योहार महापर्व छठ के पारण के दिन शुरू होता है। छठ पूजा के अंतिम दिन सुबह में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है उसी शाम से मिथिला क्षेत्र में सामा-चकेबा का त्योहार शुरू होता है।  


इस त्योहार में महिलाएं सात दिनों तक सामा-चकेबा, चुगला और दूसरी मुर्तियां बनाकर उन्हें पूजती हैं। लोक गीत गाती हैं, और सामा-चकेबा की कहानियां कहती हैं। पूजा के अंतिम दिन यानि कार्तिक पूर्णिमा की रात में सामा को प्रतिकात्मक रूप से ससुराल विदा किया जाता है। पास के किसी खाली खेत में मुर्तियों का विसर्जन किया जाता है। जिस तरह एक बेटी को ससुराल विदा करते समय, उसके साथ नया जीवन शुरू करने हेतु आवश्यक वस्तुएं दी जाती हैं, उसी तरह से विसर्जन के समय सामा के साथ खाने- पीने की चीजें, कपड़े और दूसरी आवश्यक वस्तुएं दी जाती हैं। महिलाएं विदा गीत ‘समदाओन’ गाती हैं।  

इस कहानी में सामा-चकेबा (भाई-बहन) के साथ एक चरित्र है ‘चुगला’। वह झुठी बातें फैलाता है इसलिए इस त्योहार में चुगले का मुंह काला किया जाता है। 


कहा जाता है कि सामा भगवान कृष्ण की पुत्री थीं। एक दुष्ट व्यक्ति चुगला ने सामा को अपमानित करने हेतु एक योजना बनाई। उसने सामा के बारे में भगवान कृष्ण को कुछ झुठी बातें बताईं जिसे सच मानकर गुस्से में कृष्ण ने अपनी पुत्री को एक पक्षी में बदल जाने का श्राप दे दिया। 

यह बात जब सामा के भाई चकेबा तक पहुंची तो वे बहुत दुखी हो उठे। उनको यह भी पता लगा कि सामा के विरुद्ध झुठी बातें कही गई। सामा को श्राप से मुक्ति दिलाने हेतु चकेबा को कठोर तप करना पड़ा और फिर सामा को श्राप से मुक्ति मिली। 

Friday, August 31, 2018

हैदराबाद


हैदराबाद की एक खूबसूरत शाम
साइबर टॉवर: आधुनिक #हैदराबाद  #Hyderabad की पहचान
तिरुपति: भगवान बालाजी के दरबार में


हैदराबाद में हैं तो विदेश जाने का योग तो बनेगा ही, तोते का यही कहना है

Saturday, January 6, 2018

India's Favorite Web Series वेब सीरीज जिनसे टीवी को खतरा है

मनोरंजन के लिए टीवी की दुनिया से इतर एक दुनिया है, इंटरनेट की दुनिया। और यह दुनिया, टीवी से कहीं अधिक मनोरंजक और व्यापक है। व्यापक तो इस हद तक है कि टीवी अब वेब में समाता जा रहा है। सिर्फ इंटरनेट के लिए तैयार हो रहे कंटेंट, टीवी के कंटेट से कहीं भी कम नहीं होता। कम क्या और बेहतर होते। वेब कंटेट या इंटरनेट के लिए बन रहे, सीरीयल्स, यानि वेब सीरीज के लिए काम कर रहे लोगों का कहना है कि, वेब कंटेंट में कलाकारों को काफी आजादी होती है जिससे यह और अधिक मजेदार होता है।

भारतीय दर्शकों में भी अब वेब सीरीज को काफी व्यूअरशिप मिल रही है। कई वेब सीरीज तो ऐसे हैं, जिन्हें सिर्फ यूट्यूब पर अब तक करोड़ व्यू तकक मिल चुका है। इसके अतिरिक्त, ऐप और एक्सक्लूसिव वेबसाइट के जो दर्शक हैं सो अलग।

आज मैं आपको बताने जा रहा हूं, कि भारत में कौन से 5 वेब सीरीज सबसे हिट, यानि कि मेरे फेवरेट्स हैं....


  1. Permanent Roommates परमानेंट रूममेट्स: यह कहानी है, लॉन्ग रिलेशनशीप में रह रहे एक कपल्स की। आधुनिक लाइफस्टाइल से जुड़ी इस कहानी को प्रस्तुत करने का अंदाज और कलाकारों की एक्टिंग इतनी दमदार है कि, लोगों ने रातों-रात इसमें काम करने वाले लोग स्टार हो गए। इसके बारे में ज्यादा लिखना फिजुल है। आप बस देखिए और मजे लीजिए...। इसके एक-एक एपिसोड्स को यूट्यूब पर 80 से 90 लाख व्यूस मिल चुके हैं।
  2. TVF Pitchers : 2015 में शुरू हुए इस वेब सीरीज के पहले सीजन के पहले एपिसोड्स को यू-ट्यूब पर80 लाख लोगों ने अभी तक देखा है। कॉरपोरेट लाइफ की कशमकश को मजाकिया अंदाज में प्रस्तुत इस सीरीज को लोगों ने हाथों हाथ लिया। IMDB के टॉप 250 वेबसीरीज में इसका भी नाम है।
  3. Tripling: वैवाहिक जीवन की उथल-पुथल, डिवोर्स और नौकरी छूटने जैसे समस्याओं को छूती है यह वेबसीरीज। तीन भाई-बहन एक रोड ट्रिप पर निकलते हैं और बहुत मजेदार कहानी बनती है।
  4. Man’s World: ऐसा होता तो कैसा होता। ऐसा यानि कि अगर महिलाओं की भूमिका में पुरुष आ जाएं तो क्या मजेदार कहानी बने। और यही कहानी है Man’s World की।
  5. Official Chukyagiri : सरकारी नौकरी का जमाना चला गया तो ऑफिस-ऑफिस का नेचर भी बदल गया। ज्यादा जानना है तो यूट्यूब पर देखिए Official Chukyagiri। ध्यान रखिए ये चूकियागिरी है, चूतियागिरी नहीं। 

Monday, December 4, 2017

कैसे चुने गए सलिल पारेख इंफोसिस के CEO, अंदर की कहानी

वैश्विक सूचना-तकनीक जगत में भारत का प्रतिनिधि इंफोसिस में जब फांउंडर नारायण मूर्ति और तत्कालीन CEO विशाल सिक्का के बीच विवाद शुरू हुआ, तो किसी ने नहीं सोचा था कि डायनेमिक सिक्का को इतनी जल्दी अपना पद छोड़ना पड़ेगा। बहरहाल, सिक्का गए और छह महीने के बाद कंपनी को एक नया CEO महाराष्ट्र में बसे गुजराती सलिल पारेख के रूप में मिला।

सलिल पारेख के CEO बनने से पहले उनके और सिक्का के बारे में एक मजेदार कहानी। जिस वक्त सिक्का इंफोसिस में विवादों में फंसे थे, और वे समझ नहीं पा रहे थे कि इस हालात से कैसे निकलें, उसी वक्त, सलिल पारेख भी अपनीं कंपनी, पेरिस बेस्ड आईटी क्षैत्र की वैश्विक कंपनी केपजेमिनी में संकट के दौर से गुजर रहे थे।

पारेख केपजेमिनी में वैश्विक सीईओ पद पर नजर लगाए हुए थे। लेकिन उन्हें पता लगा कि केपजेमिनी में दो अधिकारियों को ज्वाइंट ऑपरेटिंग ऑफिसर पद पर प्रोमोट किया जा रहा था। इसके साथ ही पारेख को लग गया कि ग्लोबल सीईओ बनने का सपना पूरा नहीं हो पाएगा। और फिर उन्होंने केपजेमिनी से बाहर अपने लिए संभावनाओं की तलाश शुरू की दी।


यह भी एक संयोग है कि 2014 में पारेख को रेस में पीछे छोड़कर सिक्का इंफोसिस के सीईओ बने थे और विशाल सिक्का ने जब इंफोसिस को छोड़ा तो वह पोस्ट पारेख को ही मिला। 

Tuesday, November 21, 2017

क्या हुआ था उस रात!!! (2)


इससे पहले हमलोग अनगिनत बार इस तरह के अभियानों में शामिल हुए थे। पिछले दस सालों में हम ईराक, अफगानिस्तान, और अफ्रिका के कई देशों में तैनात थे। हम उस मिशन का सदस्य भी थे जिसने 2009 में तीन सोमालियन समुद्री लुटेरों के चंगुल से कंटेनर शिप मेर्सक अलबामा के कैप्टन रिचर्ड फिलिप्स को छुड़ाया था।

मैं तो पाकिस्तान में भी रह चुका था। सामरिक दृष्टि से कहें तो आज की रात का यह अभियान सैकड़ों अन्य अभियानों से अलग नहीं था, लेकिन ऐतिहासिक तौर से कहें तो मुझे उम्मीद थी कि यह बहुत अलग होने जा रहा था।

जैसे ही मैने वो रस्सी पकड़ी, जिसे पकड़ हमें नीचे उतरना था, एक स्थिरता मेरे ऊपर हावी हो गई। हेलिकॉप्टर के दरवाजे से मैं उन लैंडमार्क्स की पहचान करने में जुट गया जिसकी तस्वीरें हफ्तों चली ट्रेनिंग के दौरान इलाके की सैटेलाइट तस्वीरों के अध्ययन के दौरान हमलोगों ने देखी थीं। मैं हेलिकॉप्टर से किसी सुरक्षा क्लिप के द्वारा बंधा नहीं था, इसलिए मेरी टीम का एक सदस्य वॉल्ट ने मेरी सुरक्षा के लिए अपने एक हाथ से मेरे जैकेट के पिछले हिस्से में लगी लूप को पकड़ रखा था। अब सब लोग मेरे पीछे दरवाजे के नजदीक जमा हो गए थे ताकि मेरे बाद वे भी एक-एक कर नीचे उतर सकें। दायीं ओर, मेरी टीम के सदस्य आसानी से दूसरे हेलिकॉप्टर चॉक टू को उसके लैंडिंग जोन में जाते देख सकते थे।

जैसे ही हम, दक्षिण-पूर्व दीवार से आगे बढ़े, हमारा हेलिकॉप्टर लैंडिंग के लिए पहले से तय जगह पर मंडराने लगा। हम तकरीबन तीस फीट ऊपर थे, और हम आसानी से कंपाउंड में सूखने के लिए फैले कपड़े देख सकते थे। ये कपड़े हेलिकॉप्टर के पंखों से निकली धूल से भर गए। नीचे की चीजें तेज हवा की वजह से उड़ने लगीं। आसपास के पशु-पक्षी सावधान हो गए।

गौर से नीचे देखने के बाद लगा कि हम अभी गेस्टहाउस के ऊपर थे। तभी हेलिकॉप्टर अचानक हिलने लगा, मुझे लगा जैसे पायलट को हेलिकॉप्टर को सही स्थिति में लाने में कुछ दिक्कतें आ रही थीं।

अब हम गेस्टहाउस की छत और कंपाउंड वॉल के बीच में पहुंच गए थे। तभी मैने देखा की हमारा चीफ रेडियो माइक्रोफोन पर पायलट को कुछ निर्देश दे रहा था। पायलट हेलिकॉप्टर को हवा में स्थिर करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन हेलिकॉप्टर लगातार असामान्य रूप से हिल रहा था। यह बहुत तेज नहीं था लेकिन मैं यह आसानी से कह सकता हूं कि यह नियंत्रित नहीं था। पायलट इसे नियंत्रित करने की लगातार कोशिश कर रहा था। लेकिन कुछ गड़बड़ी थी। पायलट को इस तरह के अभियान में शामिल होने का लंबा अनुभव था और उसके लिए हेलिकॉप्टर को अपने लक्ष्य पर लाना वैसा ही था, जैसे एक कार को पार्क करना।
नीचे कंपाउंड में देखते हुए, मैं रस्सी नीचे फेंकने की सोचने लगा ताकि हम इस हेलिकॉप्टर से बाहर निकल सकें। मैं जानता था कि इसमें खतरा था लेकिन नीचे उतरना अनिवार्य था। मुझे रस्सी फेंकने के लिए साफ जगह चाहिए थी। लेकिन साफ जगह कहीं दिख नहीं रही थी। तभी रेडियो पर आवाज आई , "हम नीचे जा रहे हैं, हम नीचे जा रहे हैं”। इसका मतलब रस्सी के सहारे नीचे उतरने की हमारी योजना असफल हो गई थी।

अब हमलोग चक्कर लगाकर दक्षिण की ओर जा रहे थे, वहां हमें लैंड करना था और उसके बाद दीवार के बाहर से धावा बोलना था। लेकिन अंदर के लोगों को तैयार होने के लिए काफी समय मिल जाना था। मेरा दिल बैठने लगा।
जबतक हमने लैंडिंग की आवाज नहीं सुनी, सबकुछ योजनाबद्ध तरीके से चल रहा था। हमने अपने रास्ते में आनेवाले पाकिस्तानी रडार और एंडी-एयरक्राफ्ट मिसाइल्स को चकमा दिया था और सही-सलामत यहां तक पहुंच गए थे। लेकिन अंदर पहुंचने की योजना खराब हो गई।

हमलोगों ने इसके बारे में पहले भी सोचा था, लेकिव वो प्लान बी थी। अगर हमारा लक्ष्य अंदर था, तो उसे सरप्राइज देना, मुख्य योजना थी, और अब यह हाथ से निकलते जा रहा था।
अपनी स्थिति को नियंत्रित करने के लिए जैसे ही हेलिकॉप्टर ने ऊपर उठने की कोशिश की यह खतरनाक तरीके से दायीं ओर मुड़ा, यह तकरीबन 90 डिग्री तक घुम गया। तभी मैने महसूस किया कि हेलिकॉप्टर का पिछला सिरा, बांयी ओर किसी चीज से टकरा गया था।

अचानाक हेलिकॉप्टर के झटका खाने से मैं अस्थिर हो गया और फिर बाहर गिरने से बचने के लिए पकड़ने के लिए कुछ सिरा तलाश करने लगा। मेरा शरीर फ्लोर से बाहर निकलने लगा और डर से मैं कांप उठा। मैं स्वयं को केबिन के अंदर रखने की भरसक कोशिश करता रहा लेकिन अन्य सभी लोग दरवाजे पर ही थे। मेरे अंदर जाने के लिए कोई जगह नहीं थी। तभी वॉल्ट की पकड़ मेरे शरीर पर और मजबूत हो गई। मैं पीछे की ओर झुका। वॉल्ट तकरीबन मेरे ऊपर पड़ा हुआ था ताकि वो मुझ अंदर रख सके।

हेलिकॉप्टर बांयी ओर झुक रहा था और, उसका पंखा गेस्ट हाउस से टकराने से बाल बाल बचा। मिशन से पहले हमलोग मजाक में कहा करते थे, कि हमारे हेलिकॉप्टर के क्रैश होने की संभावना ना के बराबर थी, क्योंकि हमलोग पहले ही बहुत सारे क्रैश झेल चुके थे। हम ये सोच रहे थे कि अगर कोई हेलिकॉप्टर क्रैश होता है तो यह चॉक टू होगा।

मिशन को यहां तक पहुंचाने के लिए हजारों लोगों ने अपना किमती समय लगाया था, लेकिन लक्ष्य के नजदीक पहुंच, हमारे जमीन पर कदम रखने से पहले ही मिशन ट्रैक से हटता लग रहा था।

मैंने अपने पैरों को कैबिन में और अंदर खीचने की कोशिश की। हेलिकॉप्टर अगर अपने किसी किनारे से जमीन से टकराता है तो यह पलट सकता था जिससे मेरे पैर फंस सकते थे।

अंदर की ओर स्वयं को खींचते हुए, मैने अपने पैरों को अपनी छाती से लगा रखा था। एक और स्नीपर ने दरवाजे से अपने पैर अंदर खींचने की कोशिश की, लेकिन कैबिन के दरवाजे में भीड़ की वजह से वो असफल रहा।

हमारे वश में कुछ नहीं था, हम बस यह उम्मीद कर रहे थे कि हैलिकॉप्टर जमीन से टकराने के बाद पलटे नहीं और उसके पैर उसमें ना फंसे। सबकुछ रुक सा गया था। मैंने क्रैश के विचार को अपने दिमाग से झटका। प्रत्येक सेकंड, हम सतह के नजदीक आ रहे थे। हेलिकॉप्टर के जमीन से टकराने से जो असर होनेवाला था उसे सोच मेरा पूरा शरीर चिंता से भर उठा था।


Friday, November 3, 2017

क्या हुआ था उस रात!!! (1)

=> यह कहानी है उस रात की जिस  रात ओसामा बिन लादेन को अमेरिकन सील कमांडर ने पाकिस्तान के उसके घर मे घुस कर मारा <=



ब्लैक हॉक क्य्रू टीम के प्रमुख ने दरवाजा खोला। मैं उन्हें देख सकता था। नाइट वीजन चश्में से उनकी आंखें ढकी हुई थीं और उनकी एक उंगली इशारा करने के लिए उठी थी। मैंने आस-पास देखा, हमारी सील मेंम्बर्स हेलिकॉप्टर से इशारा दे रहे थे।
Twin Towers 

कैबिन में इंजन से निकल रही घर्राहट की आवाज भरी हुई थी। ब्लैक हॉक के ब्लेड्स के हवा में नाचने की आवाज को छोड़कर कुछ भी सुन पाना नामुमकिन था। सतह और अबोटाबाद शहर का मुआयना करने की कोशिश में जैसे ही मैं हेलिकॉप्टर से बाहर की ओर झुका, हवा का तेज थपेड़ा मुझे लगा।

कुछ डेढ़ घंटे पहले हमलोग दो MH-60 ब्लैक हॉक में सवार होकर अंधेरी रात में निकले थे। अफगानिस्तान के जलालाबाद बेस से पाकिस्तानी बॉर्डर की यह एक संक्षिप्त यात्रा थी। और फिर पाकिस्तान बोर्डर से एक घंटे की फ्लाइट हमारे उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए जिसकी सैटेलाइट तस्वीरों को हम पिछले कई हफ्तों से खंगाल रहे थे। कॉकपिट से आ रही रौशनी को छोड़कर, कैबिन में घुप अंधेरा छाया था। मैं बांयी ओर दरवाजे से चिपका हुआ था, जगह इतनी कम कि ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था। हेलिकॉप्टर का वजन कम करने के लिए कुर्सियां हटा दी गयी थीं। बैठने के लिए हमारे पास अब फ्लोर बचा था या कुछ छोटी कैम्प कुर्सियां जिन्हें हमने ऑपरेशन से पहले स्थानीय स्पोर्ट्स दुकान से खरीदी थीं।

कैबिन के किनारे से टिके-टिके मैंने दरवाजे से बाहर अपना पैर फैलाने की कोशिश की, ताकि उनमें खून का प्रवाह बना रहा। मेरे पैर बुरी तरह से जकड़े हुए थे, और वे सुन्न पड़ गए थे। मेरे साथ मेरे केबिन में और दूसरे हेलिकॉप्टर मे नेवल स्पेशल वॉरफेयर डेवलपमेंट ग्रुप से मेरे 23 टीममेट्स थे। इससे पहले भी इनके साथ मैं दर्जनों ऑपरेशन में शामिल हो चुका था। उनमें से कुछ को तो में दस या उससे भी अधिक वर्षों से जानता था। मैं उन सभी पर पूरी तरह विश्वास करता था। पांच मिनट पहले पूरा कैबिन जीवंत हो उठा था। हमने अपने हेलमेट्स पहने, रेडियो को जांचा और फिर अपने हथियारों पर आखिरी नजर मारी। मैं 60 पाउंड्स का गियर पहना था, जिसमें से प्रत्येक ग्राम विशेष उद्देश्यों के लिए सतर्कतापूर्वक चुना गया था।
Cover page of No Easy Day

हमारे स्कवेड्रन के सबसे अधिक अनुभवी लोगों में से इस टीम को चुना गया था। पिछले 48 घंटों में हमने अपने हथियारों और औजारों को कई बार चेक किया और इस तरह से अब हम अपने अभियान के लिए पूरी तरह से तैयार थे। यह एक ऐसा मिशन था जिसके लिए मैं उसी दिन से तैयार था जब सितंबर 11, 2001 को मैंने अपने ओकिनावा के बैरक में टीवी पर ट्विन टॉवर हमले का द़श्य देखा था।

मैं ट्रेनिंग से लौटा ही था और अपने रूम में जाते ही नजर टीवी पर गई। जहाज वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से टकरा रहा था। मैने बिल्डिंग के दूसरी ओर से आग का गोला निकलते देखा, धूएं का गुब्बार बिल्डिंग से निकल रहा था।

घर में बैठे लाखों अमेरिकन्स की तरह, मैं अविश्वास की मुद्रा में इस हमले को देखता रहा। दिन के बांकि हिस्सों में मैं टीवी के सामने ही टिका रहा, और मेरा दिमाग यह समझने की कोशिश में लगा रहा कि टीवी में जो भी देखा क्या वो सच था। 


एक प्लेन क्रैश, दुर्घटना हो सकती है। टीवी न्यूज ने यह बता दिया कि दूसरे प्लेने के टकराते ही, मैने जो मतलब निकाला था, वो बिल्कुल सच था।

टावर से टकराता दूसरा प्लेन, बिना शक एक हमला था। ऐसा दुर्घटनावश नहीं हो सकता था। 11 सितंबर, 2001 को सील कमांडर के तौर पर मैं अपनी पहली तैनाती में था। जिस तरह से ओसामा बिन लादेन का नाम हमले में लिया जा रहा था, मैने सोचा कि मेरी यूनिट को अगले ही दिन अफगानिस्तान जाने का आदश मिलेगा। पिछले डेढ़ सालों से तैनाती के लिए हमारी तैयारी चल रही थी।

हमारी ट्रेनिंग, थाइलैंड, फिलिपिन्स, ईस्ट तिमोर, और ऑस्ट्रेलिया में पिछले कई हफ्तों तक होती रही। टीवी में हमले की तस्वीर देखते-देखते ऐसा लगा कि मैं ओकिनावा से अफगानिस्तान पहुंच गया और वहां अलकायदा के हमलावरों के पड़ा हूं। लेकिन, अफगानिस्तान जाने का आदेश हमें कभी नहीं मिला। मैं फ्रस्ट्रेट हो गया था। मैंने इतनी लंबी और मुश्किल ट्रेनिंग इसलिए नहीं ली थी, कि सील बन जाउं और फिर टीवी पर हमले का दृश्य देखूं। लेकिन अपना फ्रस्ट्रेशन मैने अपनी परिवार या मित्रों पर जाहिर होने नहीं दिया। वे मुझसे पूछते थे कि मैं अफगानिस्तान जा रहा था या नहीं। उनके लिए मैं एक सील था और वे सोचते थे कि तुरंत ही मेरी तैनाती अफगानिस्तान में हो जाएगी।

मुझे याद है जब मैने अपनी गर्लफ्रेंड को ई-मेल भेजा था और जिसमें मैने उस समय के खराब हालात को समझाने की कोशिश की थी। हम वर्तमान तैनाती के खत्म होने की बात कर रहे थे, जिसके बाद मुझे घर जाने का मौका मिलता और मुझे अगली तैनाती तक घर में रहने का मौका पाता। "मुझे एक महीने का मौका मिला है”, मैने लिखा। "मैं जल्द ही घर आउंगा अगर मुझे बिन लादेन को मारने को ना कहा जाए”। यह एक ऐसा मजाक था जो उन दिनों कई बार सुनने को मिलता था।

और अब जबकि ब्लैक हॉक हमारे लक्ष्य की ओर उड़ चला था, मैं पिछले दस वर्षों के बारे में सोचने लगा। जबसे हमला हुआ था, हमारे क्षेत्र में काम करनेवाला सभी लोग इस तरह के अभियान में शामिल होने का सपना देखा करता था।

उस दौर में वे सब जिनसे हम लड़ते थे, कहीं न कहीं अलकायदा लीडर से प्रभावित होते थे। वो लोगों को जहाज बिल्डिंग में टकराने के लिए प्रेरित करने में सक्षम था। इस तरह का फनैटसिटम डरावना होता है, और जैसा कि मैने देखा, ट्विन टावर्स ध्वस्त हो गए, और फिर वाशिंगटन डीसी और पेनिनसेल्वेनिया में हमले की खबर आई। मैं समझ गया कि हम अब युद्द में हैं, एक ऐसा युद्द जिसे हमने नहीं चुना है। बहुत सारे बहादुर लोगों ने वर्षों तक युद्ध करते हुए अपने बलिदान दिए, उन्हें इसका जरा भी अंदाजा नहीं था कि हम उस अभियान का हिस्सा कभी बन पाएंगे जो अब शुरू होनेवाला था।

हमले के एक दशक बाद, और लगभग पिछले आठ वर्षों तक अलकायदा के लड़ाकों को खोज-खोजकर मारने के बाद, हम बिन लादेन के कम्पाउंड में रस्सी के सहारे प्रवेश करने से कुछ मिनट की दूरी पर थे। हेलिकॉप्टर में बंधी रस्सी को पकड़ते वक्त मुझे मेरे पैर के अंगुठे में रक्तप्रवाह होने का एहसास हुआ।

मुझे से पहले एक स्निपर था, जिसका एक पैरा हेलिकॉप्टर के बाहर लटक रहा था और दूसरा अंदर, ताकि हेलिकॉप्टर से बाहर निकलने के रास्ते में अधिक कमांडोस आ सकें। उसके हथियार का बैरल कंपाउंड में अपना शिकार तलाश रहा था। कंपाउंड के दक्षिणी हिस्से को कवर करने का काम उसका था ताकि, असॉल्ट टीम रस्सी के सहारे आंगन में उतर सकें और अपने-अपने हिस्से के कार्यों को पूरा करने के लिए अलग-अलग दिशा में बढ़ें।

एक-आध दिन पहले तक हममें से किसी को यह भरोसा नहीं था कि वाशिंगटन इस अभियान को अपनी मंजूरी देगा। लेकिन कई हफ्तों के इंताजर के बाद, हम कंपाउंड से अब कुछ ही मिनटों की दूरी पर थे। खूफिया एजेंसियों के मुताबिक, हमारा लक्ष्य इसी कंपाउंड में होगा। मुझे ऐसा लगा कि वह यहां होगा। लेकिन, कुछ भी हो सकता था और इसमें आश्चर्य करने का प्रश्न ही नहीं था।

हमें पहले भी एक-दो बार ऐसा लगा था कि हम काफी करीब हैं। मैं 2007 में भी, कथित बिना लादेन के पीछे एक हफ्ते तक रह चुका था। हमें सूचना मिली थी कि, वह पाकिस्तान से हमेशा के लिए फिर से अफगानिस्तान आ रहा था। एक सोर्स ने बताया था कि उसने एक सफेद पोशाक वाले व्यक्ति को पहाड़ों में देखा था। लेकिन कई हफ्तों तक उसके पीछे भागने के बाद, पूरा अभियान निरर्थक निकला।


लेकिन इस बार का अभियान अलग था। हमारे रवाना होने से पहले, CIA की एक विश्लेषक, जो अबोटाबाद के लक्ष्य को ट्रैक करने के पीछे मुख्य ताकत थीं, ने बताया कि वे 100 फीसदी सुनिश्चित थीं, कि वह वहीं था। लेकिन अब यह महत्व नहीं रखता था। हम उस घर से कुछ सेकंड की दूरी पर थे, और जो कोई भी उस घर में था, उसपर ये रात काफी भारी परने वाली थी।

मिशन ओसामा में शामिल अमेरिकन नेवी सील कमांडर मार्क ओवेन (छद्म नाम) की किताब No Easy Day से साभार


अनुवाद: मनीष