जय-जय भैरवि असुर भयाउनि
पशुपति भामिनी माया
सहज सुमति कर दियउ गोसाउनि
अनुगति गति तुअ पाया
वासर रैनि सबासन शोभित
चरण चन्द्रमणि चूड़ा
कतओक दैत्य मारि मुख मेलल
कतओ उगिलि कएल कूड़ा
सामर बरन नयन अनुरंजित
जलद जोग फुलकोका
कट-कट विकट ओठ पुट पांडरि
लिधुर फेन उठ फोंका
घन-घन-घनय घुंघरू कत बाजय
हन-हन कर तुअ काता
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक
पुत्र बिसरू जनि माता
पशुपति भामिनी माया
सहज सुमति कर दियउ गोसाउनि
अनुगति गति तुअ पाया
वासर रैनि सबासन शोभित
चरण चन्द्रमणि चूड़ा
कतओक दैत्य मारि मुख मेलल
कतओ उगिलि कएल कूड़ा
सामर बरन नयन अनुरंजित
जलद जोग फुलकोका
कट-कट विकट ओठ पुट पांडरि
लिधुर फेन उठ फोंका
घन-घन-घनय घुंघरू कत बाजय
हन-हन कर तुअ काता
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक
पुत्र बिसरू जनि माता
..............साभार विद्यापति..............
हे भैरवी। जगत का कल्याण कर मॉं।
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