Thursday, December 24, 2015

बनाया है मैं ने ये घर धीरे-धीरे


                                                                                                                        रामदरश मिश्र

बनाया है मैं ने ये घर धीरे-धीरे,
खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे।

किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला,
कटा ज़िंदगी का सफ़र धीरे-धीरे।

जहां आप पहुंचे छलांगें  लगा कर
वहां मैं भी पहुंचा  मगर धीरे-धीरे।

पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी,
उठाता गया यूँ ही सर धीरे-धीरे।

न हँस कर न रो कर किसी में उडे़ला,
पिया खुद ही अपना ज़हर धीरे-धीरे।

गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया,
गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे।

ज़मीं खेत की साथ ले कर चला था,
उगा उस में कोई शहर धीरे-धीरे।

मिला क्या न मुझ को ए दुनिया तुम्हारी,
मोहब्बत मिली, मगर धीरे-धीरे।

No comments:

Post a Comment