15 अक्टूबर
को होने जा रहे हरियाणा विधानसभा
चुनाव में अब कुछ ही दिन बचे
हैं...।
चुनावी चकल्लस अपने चरम पर
है...।
प्रधानमंत्री से लेकर राहुल
गांधी और दूसरे दलों के बड़े-बड़े
धुरंधर नेता धूंआधार चुनाव
प्रचार में जुटे हुए हैं...।
पिछले दस सालों से हरियाणा
में सरकार चला रही कांग्रेस
के लिए मुकाबला काफी मुश्किल
होता दिख रहा है...। हां, एक
बात यह भी है कि कांग्रेस अब
उतनी कमजोर भी नहीं दिख रही
है जितनी की शुरुआती दिनों
में नजर आ रही थी..।
कांग्रेस का चुनावी अभियान
मुख्यमंत्री हुड्डा के
इर्द-गिर्द
ही घूम रहा है है..।
कांग्रेस के राज्य नेतृत्व
में हुड्डा दरअसल अकेले छोड़
दिये गये हैं...।
टिकट बंटवारे में दूसरे नेताओं
की अनदेखी से हुड्डा को चुनावी
मैदान में अपनी पार्टी के भीतर
ही अधिक चुनौतियां मिल रही
हैं..।
राहुल गांधी के खास माने जाने
वाले प्रदेश अध्यक्ष अशोक
तंवर भी पूरे मन से प्रचार में
नहीं जुटे हैं..।
कुमारी सैलजा, प्रचार
करने की वजाय अपना ध्यान इस
बात पर अधिक लगा रही हैं कि
चुनाव के बाद अगर कांग्रेस
सत्ता में वापस आती है तो.....
हुड्डा का
पत्ता किस तरह कटवाया जाए...
। लगे हाथों
सैलजा यह जताना भी नहीं भूलतीं
कि पार्टी चुनावी मैदान में
हुड्डा के दस सालों के परफॉर्मेंस
के आधार पर है, इसलिए
अगर पार्टी चुनाव में हारती
भी है तो जिम्मेदारी सिर्फ
हुड्डा की होगी...।
2014 के
चुनावी अभियान में चौटाला की
पार्टी हमेशा से सबसे आगे चल
रही थी..।
सबसे पहले उम्मीदवारों की
घोषणा और फिर चुनावी अभियान
की शुरुआत भी..।
इंडियन नेशनल लोकदल चुनाव
जीतने के लिए कोई कोर कसर नहीं
छोड़ना चाहती..।
व्यक्ति आधारित पार्टी के
साथ सत्ता से बाहर रहने के बाद
अपनी प्रासंगिता बनाए रखने
की चुनौति होती है..।
दस सालों से सत्ता से बाहर रही
आईएनएलडी से अधिक इस बात को
और कौन जान सकती है..।
इसलिए पार्टी ने इस बार के
चुनावी अभियान में अपना सर्वस्व
झोंक दिया है..।
यहां तक कि खराब स्वास्थ्य
के आधार पर जेल से जमानत पाए
ओमप्रकाश चौटाल भी खुद को
चुनावी मैदान से दूर नहीं रख
पाए..।
चौटाला अभी नहीं तो कभी नहीं
के आधार पर अपनी पार्टी का
चुनावी अभियान चला रहे हैं...।
आईएनएलडी का अपना एक आधार
है... और
फिर चैौटाला के जेल से बाहर
निकलने से ... पार्टी
उस हताशा से उबरने का प्रयास
तेजी से कर रही है जो...
ओमप्रकाश और
बेटे अजय चौटाला के सजायाफ्ता
होने से पैदा हुई थी..।
ओमप्रकाश चौटाला को जेल में
फिर से डालने के लिए कानूनी
प्रयास बहुत तेजी से हो रहे
हैं... लेकिन
चुनावी लड़ाई अब उस जगह पर
पहुंच चुकी है जहां...
चौटाला जेल
जाकर भी अपनी पार्टी का भला
करवा जाएंगे..।
लोकसभा
चुनाव में दस में से सात सीटें
जीतने वाली पार्टी भाजपा एक
बार फिर से मोदी के नाम के सहारे
है..।
विधानसभा चुनाव में पार्टी
के पक्ष में जो भी माहौल है
उसमें सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी की रैलियों का
हाथ है..।
शायद यह पहली बार हो रहा है
जबकि कोई प्रधानमंत्री किसी
विधानसभा चुनाव में इस तरह
से व्यापक पैमाने पर चुनावी
रैलियां कर रहा हो..।
राज्य में विपक्ष में होने
के नाते जो एकजुटता होनी चाहिए
उसकी कलई इस बात से खुल जाती
है कि अमित शाह किसी भी व्यक्ति
को मुख्यमंत्री के रूप में
आगे करने का साहस नहीं जुटा
पाए..।
दूसरे दलों से आए नेता जहां
सीएम की कुर्सी पर निशाना
गड़ाए हुए हैं.. वहीं
पार्टी के पुराने नेता जैसे
अनिल विज, रामविलास
शर्मा, मनोहर
लाल खट्टर भी ताल ठोक रहे
हैं...।
चुनावी अभियान को देखें तो
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष
अमित शाह... कैप्टन
अभिमन्यु की तरफ ईशारा कर चुके
हैं..।
लेकिन लोकसभा चुनाव में कैप्टन
अभिमन्यु की करारी हार,
स्थानीय लोगों
में उनके प्रभाव का अभाव और
भाजपा की स्थानीय राजनीति की
उलझनें... अमित
शाह को प्रत्यक्ष तौर से किसी
नेता का आगे करने से रोक रही
है..।
कुलदीप
बिश्नोई की पार्टी हरियाणा
जनहित कांग्रेस (हजकां)
खुद को चुनावी
मैदान से बाहर मानकर चल रही
है.. ..।
पार्टी की चुनावी गतिविधियां
कुच उन क्षेत्रों तक सीमित
हो कर रह गई हैं जहां से परिवार
के लोग चुनावी मैदान में हैं
या जो पार्टी का पुराना किला
रही है..।
गठबंधन टूटने का असल बीजेपी
को भी झेलना पड़ सकता है...।
लेकिन हजकां राजनीतिक हाशिए
पर पहुंच गई है..।
अगर हजकां का चुनावी नतीजा
अच्चा नहीं रहा (जैसा
होता अभी दिख रहा है), तो
बिश्नोई को व्यक्तिगत राजनीति
को चलाने के लिए भी किसी दूसरी
पार्टी का दामन थामना पड़ सकता
है।
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