पिछले कई दशकों से
समाजादी पार्टी उत्तर प्रदेश में अजेय बनी हुई है। अजेय का अर्थ यह नहीं कि इस दल ने चुनाव नहीं हारा। इसका मतलब यह कि इसके आधार वोटों में शायद ही कभी
बिखराव देखा गया हो। लेकिन पहली बार इस पार्टी के अस्तित्व पर ही संकट आता नजर आ
रहा है। शिवपाल के विरोध के
बावजूद मुलायम सिंह ने अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया। उद्देश्य साफ था पार्टी में
पावर का हस्तांतरण मुलायम की अगली पीढ़ी में करना था। मुलायम की छत्रछाया में
अखिलेश यादव को एक ऐसा कद विकसित करने का मौका उपलब्ध कराना था जहां वे स्वयं को
सत्ता और पार्टी में निर्विवाद रुप से नेता के तौर पर स्थापित कर सकें।
कहां चूके अखिलेश?
लेकिन इस मौके का फायदा उठाने
में अखिलेश चूक गए से दिखते हैं। अखिलेश मुख्यमंत्री हैं, पार्टी मुखिया के पुत्र
हैं जाहिर है लोग उनके साथ तो रहेंगे ही। लेकिन इसमें उनके नेता होने का कम,
मुख्यमंत्री और मुलायम पुत्र होने का योगदान अधिक है।
मुख्यमंत्री बनने के बाद
के सालों में अखिलेश की सबसे बड़ी उपलब्धि होती अगर वो परिवार में स्वयं को मुलायम
के उत्तराधिकारी के तौर पर स्थापित कर लेते। लेकिन अखिलेश ने किया इसक उलटा।
उन्होंने अपने उस चाचा शिवपाल से झगड़ा मोल ले लिया जिनका समाजवादी पार्टी के
विकास में मुलायम के बराबर ही तकरीबन योगदान है। शिवपाल का प्रदेश में अपना
एक समर्थक वर्ग है। मुलायम इस बात को स्वयं भी बार-बार कहते रहे हैं कि शिवपाल जमीनी नेता हैं जिनकी पकड़ पार्टी
कार्यकर्ताओं और जनता में अच्छी है। लेकिन समाजवादी परिवार,
जिसे मुलायम ने अपने परिवार के सभी
सदस्यों, यादवों और मुस्लिम मतों के सहयोग से बनाया अचानक बिखड़ती नजर आ रही है।
शिवपाल होंगे कमजोर!
आप गलत सोच और पढ़ रहे
हैं अगर आप यह सोचते हैं कि अखिलेश पार्टी को तोड़ देंगे। समय आने दीजिए....
पार्टी टूटेगी जरूर… लेकिन तोड़ने वाले अखिलेश नहीं.. शिवपाल होगें। पिता-पुत्र
पर भाई-भाई भारी नहीं पड़ा है। मुलायम की डांट सिर्फ एक पिता की डांट भर है। और
अखिलेश इससे ज्यादा मुलायम की डांट को महत्व भी नहीं देते। भाई के अहसानों तले
मुलायम दबे हैं और पुत्र नियंत्रण से बाहर जा चुका है।
निर्णय लेना मुलायम के लिए
आसान नहीं है। भाई शिवपाल को दिलासा दे रहे हैं कि वे उनके साथ हैं लेकिन पुत्र के
विरुद्ध कोई को कदम नहीं उठा रहे। रामगोपाल पार्टी से बाहर निकाल दिए गए... अखिलेश
के विरुद्ध क्या कदम लिया??? कुछ नहीं।
पार्टी बैठक असफल
पिछले सोमवार, 24 अक्टूबर,
को मुलायम ने पार्टी की बैठक बुलाई थी। सोचा कि पार्टी बनाने में हुई संघर्ष की
कहानी सुनाकर अखिलेश और शिवपाल को एक कर देंगे। लेकिन हुआ इसका उलट। स्थिति और
बिगड़ गई। अखिलेश-शिवपाल हाथापाई पर उतर आए। इतनी ही नहीं... अब मुलायम के हाथ में
भी कुछ नहीं है। अगले दिन शिवपाल के साथ मुलायम ने मीडिया से बात की लेकिन अखिलेश
नहीं आए। शिवपाल को वापस सरकार में लेने के मामले को उन्होंने मुख्यमंत्री पर छोड़
दिया। साफ है मुलायम कोशिश तो कर रहे हैं लेकिन पुत्र नियंत्रण से बाहर जा चुका
है।
अमर सिंह
अमर सिंह तो बेचारे बेकार
में बदनाम हो रहे हैं.... इस मैच के असली खिलाड़ी तो परिवार में ही हैं। वो चाहे रामगोपाल
हों या फिर नेताजी की दूसरी पत्नी और उनके बच्चे। ये आग अमर सिंह के आने से
नहीं लगी है। अगर ऐसा हुआ होता तो इस स्तर
तक नहीं पहुंचता कि सबके सामने मुख्यमंत्री अपने चाचा से भिर जाएं। सत्ता संघर्ष
तो सपा की सरकार मं आते ही शुरू हो गई थी चुनाव की पूर्व संध्या पर असली लड़ाई है
अपने अधिक से अधिक समर्थकों को टिकट दिलाना।
किसके पास क्या उपाय
मुख्यमंत्री
अखिलेश की कोशिश अब पार्टी पर पकड़ बनाने की होगी। असली संघर्ष तब शुरू होगा जब टिकटों का बंटवारा शुरू होगा। मुलायम एक बार फिर से भाई और पुत्र के बीच में फंसेंगे और
पुत्र का साथ देकर अपने कर्तव्यों की इतीश्री करेंगे। ऐसे में शिवपाल के लिए कुछ
खास करने को नहीं बचेगा। वे अलग पार्टी बनाकर समाजवादी परिवार और वोट बैंक में
विखराव कर सकते हैं। अमर सिंह की पारी अब समाप्त है। मुलायम और शिवपाल को छोड़कर
उन्हें कोई पूछ नहीं रहा है। उनकी कोशिश होगी की सफलता पूर्वक राज्य सभा का
कार्यकाल पूरा कर लें। रामगोपाल आनेवाले समय में अखिलेश के अमर साबित हो सकते हैं। इसलिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत अखिलेश के पीछे झोंक दी है।
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