अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप
जीत गए। हिलेरी क्लिंटन हार गईं। दुनिया भर में तहलका मच गया। क्यों भई, ये हंगामा क्यों!!!! ट्रंप सुल्तान को सुल्तान की गद्दी तो नहीं मिली। ना ही उन्हें अपने पिता से राजशाही मिली है। उन्हें तो अमेरिका
की जनता ने चुना है, उन्होंने हिलेरी क्लिंटन को चुनाव में धमाकेदार तरीके से
हराकर राष्ट्रपति पद हासिल की। फिर ये हंगामा क्यों।
हंगामा इसलिए... कि कुछ
लोग दुनियाभर में समझदारी की ठेकेदारी चलाते हैं। उन्हें लगता है कि दुनिया के
सबसे बड़े समझदार वे ही हैं। वे सोचते हैं कि जिनका समर्थन वे करते हैं... उस
व्यक्ति को ही चुनाव जीतने चाहिए। जिसका विरोध वे करते हैं.. उसे हार जाना चाहिए।
चलिए यहां तक तो ठीक है। समझदारी का उनका स्तर इस हद तक पहुंच गया कि वे जनता के
चुने हुए नेता को स्वीकार करने को तैयार नहीं हो रहे।
अमेरिका को देखिए.. ट्रंप
की जीत से कुछ लोग इतने बौखला गए कि वे विरोध में सड़कों पर उतर आए। जरा अंतर
देखिए... होता अमूमन ये है कि जीत से
उत्साहित होकर विजयी पार्टी के लोग सड़कों पर उतर कर जश्न मनाते हैं.. और यहां
विरोधी सड़क पर उतर ट्रंप की जीत को मानने से इनकार कर देते हैं।
चुनाव से पहले 100 फीसदी
गारंटी के साथ ऐसे ही समझदार बुद्दिजीवी जोर-शोर से घोषणा कर रहे थे कि हिलेरी की
जीत पक्की है। ट्रंप के लिए मर्शिया पढ़ दिया गया था। लेकिन उनकी सारी भविष्यवाणी
धरी की धरी रह गई। अमेरिकी जनता ने बता दिया कि फैसले सिर्फ जनता लेती है..
बुद्धिजीवी नहीं। आपको यह सारा खेल भारत से मिलता-जुलता लग सकता है।
ट्रंप जीत गए, हिलेरी हार
गईं। ट्रंप के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन हो गए। लेकिन बस इतना कुछ इन बुद्धिजिवियों
को काफी नहीं लगा। इन बुद्धिजिवियों का अगल स्तर देखिए... फिर से भविष्यवाणी पर
उतर आए..। कोई कहता है ट्रंप अपना
कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे। कोई कहता है ट्रंप को महाभियोग लगाकर हटा दिया
जाएगा। कोई कुछ, कोई कुछ। कहने का मतलब यह है कि वे किसी कीमत पर ट्रंप को पचाने
के लिए राजी नहीं हैं।
लोकतंत्र के जो ये
ठेकेदारी लिए तथाकथित बुद्धिजीवी बैठे हैं... उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है। ये कुछ और नहीं बल्कि लोकतंत्र के सबसे बड़े
दुश्मन हैं। इन्हें सिर्फ जीत चाहिए। इनके शब्दकोश में लोकतंत्र का मतलब सिर्फ जीत
होता है और कुछ नहीं। असल में ये लोग
लोकतांत्रिक नहीं हैं। ऐसे लोग एक बार नहीं बार- हारेंगे। क्योंकि जो दूसरे की जीत
का सम्मान नहीं जानता है उसे स्वयं भी जीतने का हक नहीं होता है।
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