जब
भी मैं गुजरात की तरफ देखता
हूं तो यही सोचता हूं कि यह
राज्य इतना "लोहा"
कहां
से लाता है ???
चौंक
गये!!
गुजरात
और लोहा!!!
इनमे
क्या सम्बन्ध है????
मैं
आपको बताता हूं...।
जब भी आप गुजरात की चर्चा करते
हैं...
गुजरातियों
की चर्चा करते हैं तो आपके
ज़हन में क्या आता है…????
चलिए
मैं आपको बताता हूं कि मेरे
ज़हन में क्या आता है!!!
शांतिप्रिय
लोग,
भाषा
में छे-छू
का अधिक प्रयोग,
चुपचाप
शांति से व्यापार करनेवाले
लोग,
हिंसा,
अपराध
से दूर रहनवाले लोग,
हमेशा
कानून का पालन करने वाले,
और अंत
में अपने काम से मतलब रखनेवाले
लोग..।
यानि कुल मिलाकर कहें..
तो 'ना
काहू से दोस्ती ना काहू से
वैर' के
सिद्धांत पर चलनेवाले लोग…।
लेकिन
जब इस समाज या राज्य को देखने
से पता चलता है कि आराम की
जिंदगी छोड़,
देश-समाज
की भलाई के लिए दूसरों से बैर
लेने वाले,
सबसे
मजबूत लोग इसी समाज से हुए..।
वो
फकीर गुजरात का ही था...
जो बिना
हथियार उठाये अंग्रेजों से
टकराता रहा। और जब अपने भटकते
दिखे तो उनसे भी किनारा करने
में उसे वक्त नहीं लगा। महात्मा
गांधी उस वैचारिक दृढ़ता के
प्रतीक थे जिसने असंभव को भी
संभव बनाना सिखाया। लौह इरादे
के बापू ने पूरे देश को अंग्रेजी
सत्ता के सामने ला खड़ा किया
जिससे देश आजाद हुआ...।
सरदार
बल्लभ भाई पटेल ऐसे थे कि लौह
पुरुष ही कहे जाने लगे...।
एक तरफ गांधी-नेहरु
दूसरी तरफ उनसे पूरी विनम्रता
के साथ सैद्धांतिक टकराव लेते
गुजराती सरदार बल्लभ भाई
पटेल..।
अपने लिए कुछ मुनाफे की ख्वाहिश
नहीं,
सिर्फ
देश के लिए...।
शायद ये न होते तो भारत कई और
देशों में बंटा होता और ये कुछ
और साल जिंदा होते तो इस देश
के नक्शे में कुछ और हिस्से
जुड़े होते...।
मोरारजी
देसाई आजाद भारत में बनी पहली
ग़ैर कांग्रेसी सरकार के
प्रधानमंत्री थे। अभी की पीढी
भले ही मोरारजी भाई के बार में
अनजान हो लेकिन जो उस दौर के
गवाह रहे हैं कि वे जानते हैं
कि मोरारजी भाई किस तरह लौह
व्यक्तित्व सख्सियत थे। उन्हें
भारत रत्न के साथ ही पाकिस्तान
के सबसे बड़े नागरिक सम्मान
निशान-ए-
पाकिस्तान
से भी सम्मानित किया गया था।
और
अब बात नरेन्द्र दामोदरदास
मोदी की..।
बीजेपी का एक छोटा सा नेता
दिल्ली में बैठा है..
वहीं
उसे गुजरात जाने का हुक्म
सुनाया जाता है...।
गुजरात का सीएम बनता है...।
और फिर शुरु होता है उसके जीवन
का सबसे कठिन दौर। पहले राज्य
का भूकंप से तबाह होना। और फिर
इससे उबरने के ठीक बाद सबसे
भयानक हिंदू-मुस्लिम
दंगा। दंगा ऐसा,
जो उसे
अपने घर में भी बेगाना बना
देता है...।
राजनीतिक रुप से अछूत बन जाता
है वह व्यक्ति...।
छूआछूत विरोधी कानून नहीं
होता तो शायत वह सामाजिक रुप
से भी अछूत घोषित कर दिया जाता।
लेकिन लौह निश्चय,
लौह
आत्म विश्वास से भरा यह शख्स
दशक भर से अधिक समय तक खुद को
स्थापित बनाए रखने की लड़ाई
लड़ता रहा। समय हर घाव को भर
देता है लेकिन उसकी नीयति में
कोई बदलाव नहीं दिख रहा था...।
लोग अपने फायद के लिए उसके नाम
के साथ एक से एक उपमा जोड़ रहे
थे.. मौत
के सौदागर से आगे न जाने क्या
क्या!!!
कुछ लोग
तो राष्ट्रीय संप्रभुता के
मुद्दे को नकारते हुए इस शख्श
के खिलाफ दूसरे देशों को भी
चिट्टी लिख रहे था..।
कोई
और होता तो टूट जाता,
बिखर
जाता लेकिन इस शख्श ने झुकना
तो सीखा ही नही था..।
लड़ना और जीतना यही तो पहचान
है नरेन्द्र मोदी की। जनता
यह सब देख रही थी..
देख ही
नहीं रही थी,
समझ भी
रही थी..।
और इस लौह दृढ़ता वाले पुरुष
को आंक रही थी,
उसका
मुल्यांकन कर रही थी। और एक
दिन एक झटके में उसे सवा अरब
आबादी वाले देश में सत्ता के
शीर्ष पर पहुंचा दिया।
देश
में एक से एक नेता हुए हैं...
लेकिन
गुजरात के जिन महापुरुषों
(नरेन्द्र
भाई का प्रधानमंत्री काल अच्छा
रहा तो इतिहास उन्हें महापुरुष
के रुप में ही याद करेगा)
की मैने
चर्चा की है वो अपने काल के
सर्वश्रेष्ठ रहे हैं...।
आप समझ गये होंगे कि मेरा प्रश्न
वाजिह है कि गुजरात इतना लोहा
कहां से लाता है जिनसे ऐसे लौह
पुरुष तैयार होते हैं..।