'बहुत जान है......'
पता नहीं
उम्र का क्या दौर था वो। दूरदर्शन पर जो भी कार्यक्रम आता हो, उसे देखना किसी भी दूसरे कामों से महत्वपूर्ण होता था। उन्हीं
दिनों टीवी पर कालीचरण,
खुदगर्ज और काला पत्थर के
शत्रुघ्न सिन्हा से वास्ता
पड़ा था। मामूली शक्ल का
यह हीरो, चेहरे पर
कटे के निशान के बाद भी इस मासूम
के दिल पर गहरा असर छोड़ गया
था। अमिताभ का सबसे बड़ा फैन
खुद को मानता हूं यह जानते हुए
कि मैं उस शख्स को बिल्कुल
नहीं जानता। लेकिन आज जब तूलना
करता हूं तो कालीचरण ना तो
विजय दिनानाथ चौहान से छोटा
लगा था और ना ही डॉन से।
एक दौर
की समाप्ती
और
जब निंद टूटी तो चारो तरफ अंधेरा
था। शाम में ही नहीं, सुबह
में भी। रात में ही नहीं दिन
में भी। एक हाथ में रौशनी की
किरण नजर आई थी... टोह
लेते-लेते वहां
पहुंचा तो धमाका..।
अंधेरा और गहरा गया।
कुछ दिनों
बाद...
अब
ना तो कालीचरण के लिए वक्त है
और ना ही दीनानाथ चौहान के लिए। दिमाग
में पिताजी के शब्द सिर्फ
इतने, कि बेटा पढ़
ले। कुछ बन जाओगे दो दिन संवर
जाएगा। नहीं तो आंख के आंसू
... से पोछते रह जाओगे
जिंदगी भर।
एक और
दौर!
"बहुद
जान है इस मुजफ्फरपुर में"। 'कालीचरण' को पहली बार पर्दे
से इतर अपनी आंखों के सामने
देखने का मौका मिला। भाषण के
बीच प्रत्येक 30 सेकेंड
पर अपने जैकेट को संवारता
कालीचरण आंखों को भा नहीं रहा
था। जब उसने कहा कि बहुत दम है
इस शहर में तो तालियां तो बजीं
लेकिन वह इस व्यक्ति के लिए
नहीं सिर्फ उस किरदार के लिए
जो अंधेरे से मुक्ति दिलाने
का वादा कर रहा था।
और फिर
एक दिन...
और
फिर एक दिन अंधेरे से मुक्ति
दिलाना का वादा करता ऱौशनी
से नहाया हुआ वह शख्स खुद अंधेरे
की गुलामी करने लगा। अंधेरे
को वह अपना दोस्त बताने लगा।
चारों तरफ घटाटोप अंधेरा। यह
शख्स खुद रौशनी से चौंधियाया
हुआ, अंधेरों की
दुहाई देता नजर आया। तालियां
बजने लगी। रौशनी में डूबा हुआ
शख्स आंखें बंद कर खुद को अंधेरे
का बादशाह समझने लगा। उजाले
तो गुलाम थे ही, अंधेरे पर भी साम्राज्य कायम हो गया।
घटाटोप अंधेरा।
इसके आगे एक लंबे समय के बाद.....
bahut badhiya Manishji...
ReplyDeleteThanx
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