Thursday, January 5, 2017

दोस्त या दुश्मन

कुछ और सोचा था लिखने को कि तभी इस ब्लाॉग के पिछले पोस्ट पर नजर गयी। टाटा-मिस्त्री....। इससे अधिक कुछ और मुश्किल नहीं होता है।

संबंधों की जटिलता से। अपने मित्रों को देखता हूं। चोर-उचक्का से लेकर देवता तुल्य व्यक्ति भी सूचि में शामिल हैं।

दोस्तों को देखते-देखते ध्यान उन लोगों पर जाता है जो आपके दुश्मनों की सूचि में हैं। लेकिन यह क्या... इसमें भी सिर्फ बुरे नहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जो पूज्य हैं।

कुछ बात समझ में आयी। दोस्त और दुश्मन होने के लिए अच्छा या बुरा होना काफी नहीं है। कोई मन को भा गया तो दोस्त बन गया और नहीं भाया तो देवता तुल्य लोग भी आपके दुश्मनों में शामिल हो गए......

कुछ लोगों के लिए अफसोस होता है। उन्हें तो आपके दोस्तों में होना चाहिए था... वे तो आपके दोस्त थे.. फिर दुश्मन कैसे हो गए। यही बात आपके बस में नहीं होती.....।

ये सारी बातें इसलिए जहन में आयी कि एक मित्रवत अग्रज अचानक दूर हो गए। गलती मेरी थी... मैंने उनकी अच्छाइयों को हमेशा हलके में लिया...। सोचा वे तो हमेशा साथ रहेंगे...। लेकिन अब समझ में आई कि नहीं ऐसा नहीं होता है... । आपको अपनों का ख्याल रखना होता है।