Thursday, November 24, 2016

दुश्मनो को मिट्टी में मिला देंगे ये....


देश के दुश्मनों की अब खैर नहीं है। उनसे निपटने के लिए एक विशेष सुरक्षा दस्ते का गठन किया जा रहा है। यह एक ऐसा दस्ता होगा जो पलक झपकते ही दुश्मनों को नेश्तनाबूत कर देगा।
हरियाणा के मानेसर स्थित NSG का मुख्यालय

आतंकवादियों से निपटने के लिए 1984 में NSG यानि की राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड का गठन किया गया था। देस के सभी सुरक्षा बलों से जाबांजो को चुनकर NSG में विशेष ट्रेनिंग देकर दी जाती है। इस बल का काम है आतंकी हमला होने की सुरत में त्वरित कार्रवाई करके आतंकियों का खात्मा करना।

दुनिया के चोटी के आंतकवादरोधी दस्ते में NSG का नाम शामिल है। यहां तक की NSG की ट्रेंनिंग में अमेरिका के आतंकवाद विरोधी विशेष बल भी अपना सहयोग देती है ताकि भारत आतंक की वैश्विक चुनौतियों का सामना सफलतापूर्वक कर सके।

और अब तैयार हो रहे हैं फैंटम कमांडोस। जी हां.... फैंटम मतलब चलता-फिरता प्रेत। अदृश्य रहते हुए अपने दुश्मनों का खात्मा कर देना फैंटम कमांडोस का काम है। NSG की ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उनके जाबांज कमांडो को चुनकर फैंटम कमांडोस में शामिल किया जाता है। NSG से अलग कर इन्हें किसी गुप्त जगह पर 9 महीने की और ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद तैयार होते हैं फैंटम कमांडो। फैंटम कमांडो को दुनिया की आधुनिकतम रक्षा तकनीक और हथियारों की ट्रेनिंग दी जाती है।

अपने दुश्मनों को ये पलक झपकते ही समाप्त करने की क्षमता रखते हैं। जिस तेजी से देश विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है उसी तैजी से देश के सामने चुनौतियां भी बढ़ रही हैं। इन चुनौतियों में आतंकवाद सबसे प्रमुख है। दुश्मन देश हमेशा इस फिराक में रहता है कि कब मौका मिले  और देश को आतंक की आग में झोंक दें। ऐसे में दुश्मनों से निपटने में फैंटम बहुत कारकर साबित होंगे।

अपनी कठिन ट्रेनिंग की बदौलत NSG के कमांडोस कई ऑपरेशनों को सफलतापूर्वक अंजाम दे चुके हैं। अब उनके विशिष्ट साथियों को लेकर बनाया जा रहा फैंटम निश्चित दौर पर देश की सुरक्षा को और मजबूती प्रदान करेगा। 

Tuesday, November 15, 2016

जनादेश को स्वीकारना सीखिए जनाब..

अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप जीत गए। हिलेरी क्लिंटन हार गईं। दुनिया भर में तहलका मच गया। क्यों भई, ये हंगामा क्यों!!!! ट्रंप सुल्तान को सुल्तान की गद्दी तो नहीं  मिली। ना ही उन्हें अपने पिता से राजशाही मिली है। उन्हें तो अमेरिका की जनता ने चुना है, उन्होंने हिलेरी क्लिंटन को चुनाव में धमाकेदार तरीके से हराकर राष्ट्रपति पद हासिल की। फिर ये हंगामा क्यों।

हंगामा इसलिए... कि कुछ लोग दुनियाभर में समझदारी की ठेकेदारी चलाते हैं। उन्हें लगता है कि दुनिया के सबसे बड़े समझदार वे ही हैं। वे सोचते हैं कि जिनका समर्थन वे करते हैं... उस व्यक्ति को ही चुनाव जीतने चाहिए। जिसका विरोध वे करते हैं.. उसे हार जाना चाहिए। चलिए यहां तक तो ठीक है। समझदारी का उनका स्तर इस हद तक पहुंच गया कि वे जनता के चुने हुए नेता को स्वीकार करने को तैयार नहीं हो रहे।

अमेरिका को देखिए.. ट्रंप की जीत से कुछ लोग इतने बौखला गए कि वे विरोध में सड़कों पर उतर आए। जरा अंतर देखिए...  होता अमूमन ये है कि जीत से उत्साहित होकर विजयी पार्टी के लोग सड़कों पर उतर कर जश्न मनाते हैं.. और यहां विरोधी सड़क पर उतर ट्रंप की जीत को मानने से इनकार कर देते हैं।

चुनाव से पहले 100 फीसदी गारंटी के साथ ऐसे ही समझदार बुद्दिजीवी जोर-शोर से घोषणा कर रहे थे कि हिलेरी की जीत पक्की है। ट्रंप के लिए मर्शिया पढ़ दिया गया था। लेकिन उनकी सारी भविष्यवाणी धरी की धरी रह गई। अमेरिकी जनता ने बता दिया कि फैसले सिर्फ जनता लेती है.. बुद्धिजीवी नहीं। आपको यह सारा खेल भारत से मिलता-जुलता लग सकता है।

ट्रंप जीत गए, हिलेरी हार गईं। ट्रंप के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन हो गए। लेकिन बस इतना कुछ इन बुद्धिजिवियों को काफी नहीं लगा। इन बुद्धिजिवियों का अगल स्तर देखिए... फिर से भविष्यवाणी पर उतर आए..।  कोई कहता है ट्रंप अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे। कोई कहता है ट्रंप को महाभियोग लगाकर हटा दिया जाएगा। कोई कुछ, कोई कुछ। कहने का मतलब यह है कि वे किसी कीमत पर ट्रंप को पचाने के लिए राजी नहीं हैं।


लोकतंत्र के जो ये ठेकेदारी लिए तथाकथित बुद्धिजीवी बैठे हैं... उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है।  ये कुछ और नहीं बल्कि लोकतंत्र के सबसे बड़े दुश्मन हैं। इन्हें सिर्फ जीत चाहिए। इनके शब्दकोश में लोकतंत्र का मतलब सिर्फ जीत होता है और कुछ नहीं।  असल में ये लोग लोकतांत्रिक नहीं हैं। ऐसे लोग एक बार नहीं बार- हारेंगे। क्योंकि जो दूसरे की जीत का सम्मान नहीं जानता है उसे स्वयं भी जीतने का हक नहीं होता है।  

Tuesday, November 8, 2016

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया



अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में दो मुख्य उम्मीदवार हैं—रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेट हिलैरी क्लिंटन। इनके अतिरिक्त कुछ दुसरे उम्मीदवार भी हैं । आज अमेरिका के 50 राज्यों और डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया के 18 वर्ष से अधिक के मतदाता वोट देंगे।

आम धारणा के उलट अमेरिकी जनता सीधे राष्ट्रपति को चुनाव नहीं करती। अमेरिकी मतदाता 8 नवंबर को अपने पसंदीदा राष्ट्रपति उम्मीदवार को वोट देते हैं। जिस उम्मीदवार को जिस अमेरिकी राज्य में सर्वाधिक वोट मिलेंगे उस राज्य के सभी इलेक्टर उसे मिल जाएंगे। यानी हर राज्य से किसी राष्ट्रपति पद के किसी एक उम्मीदवार को सारे इलेक्टर मिलते हैं। इसके बाद सभी राज्यों से चुने हुए इलेक्टर राष्ट्रपति चुनते हैं।  चूंकि लोकप्रिय वोटों की गिनती के साथ ही पता चल जाता है कि किस उम्मीदवार के पास कितने इलेक्टर हैं इसलिए ये साफ हो जाता है कि राष्ट्रपति कौन बनेगा लेकिन आधिकारिक तौर पर कोई उम्मीदवार राष्ट्रपति इलेक्टरों के मतदान के बाद ही बन पाता है।

इलेक्टरों की संख्या कैसे तय होती है? अमेरिका के 50 राज्यों और डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया के कुल 538 सदस्यों से इलेक्टर कॉलेज बनता है। इलेक्टर की संख्या हर राज्य के सांसदों के समानुपाती होती है। अमेरिका में हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव के 435 (जनसंख्या के आधार पर 1911 में निर्धारित की गई थीं) सदस्य हैं। सीनेट के 100 (हर राज्य का दो) सदस्य और डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया के तीन। इस अनुपात में कुल 538 इलेक्टर चुने जाते हैं।

कौन हैं इलेक्टर? इलेक्टर राजनीतिक पार्टियों के सदस्य होते हैं। कोई सीनेटर या रिप्रजेंटेटिव या किसी भी सरकारी लाभ के पद पर आसीन व्यक्ति इलेक्टर नहीं बन सकता। हर पार्टी हर राज्य के लिए अपने इलेक्टर चुनती है। मसलन, इलिनॉय राज्य में डेमोक्रेटिक पार्टी के 20 इलेक्टर हैं और रिपब्लिकन के 20 और इसी तरह बाकी पार्टियों के।

इलेक्टर कैसे चुने जाते हैं? हर पार्टी चुनाव से पहले संभावित इलेक्टर चुनती है। हर राज्य में इलेक्टर चुनने की प्रक्रिया अलग-अलग होती है। हालांकि डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी जैसी पार्टियां या तो पार्टी की राज्य इकाई द्वारा नामित किए जाते हैं या पार्टी की केंद्रीय कमेटी उनका चुनाव करती है।

इलेक्टर कब चुनेंगे राष्ट्रपति? 18 दिसंबर को सभी इलेक्टर अपने-अपने राज्यों में वोट देंगे। जनवरी, 2017 में इलेक्टरों के वोट गिने जाएंगे। और 20 जनवरी 2017 को अमेरिका के नए राष्ट्रपति शपथ ग्रहण करेंगे।  अमेरिका में कुल 538 इलेक्टर हैं। राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार को कुल इलेक्टरों के आधे से अधिक वोट हासिल करने होते हैं।

अगर किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो? अगर किसी प्रत्याशी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव शीर्ष तीन प्रत्याशियों में से राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। सीनेट शीर्ष दो प्रत्याशियों में से उप-राष्ट्रपति का चुनाव करती है। अमेरिकी इतिहास में अभी तक केवल एक बार हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव ने राष्ट्रपति चुना है। 1824 में क्विंकी एडम्स इस तरह राष्ट्रपति चुने गए थे।

क्या ज्यादा लोकप्रिय वोट पाने वाला प्रत्याशी हार भी सकता है? चूंकि अमेरिकी जनता सीधे राष्ट्रपति पद का चुनाव नहीं करती इसलिए जरूरी नहीं है कि ज्यादा लोकप्रिय वोट पाने वाला उम्मीदवार ही राष्ट्रपति बने। अगर किसी प्रत्याशी को किसी छोटे राज्य में जीत मिली है लेकिन बड़े राज्य में हार तो उसके मिलने वाले इलेक्टरों की संख्या कम हो जाएगी। इस तरह वो ज्यादा वोट पाने के बाद भी हार सकता है। मसलन, अगर कोई प्रत्याशी कैलिफोर्निया में चुनाव जीत जाता है तो उसे वहां के कुल 55 इलेक्टर मिल जाएंगे।

अमेरिकी इतिहास में अभी तक केवल चार बार ऐसा हुआ है कि कम लोकप्रिय वोट पाने वाला उम्मीदवार राष्ट्रपति बना। सबसे ताजा मामला साल 2000 का है जब जॉर्ज बुश ने अल गोर को कम वोट मिलने के बावजूद हरा दिया था क्योंकि उनके पास ज्यादा इलेक्टर थे।साभार: जनसत्ता