=> यह कहानी है उस रात की जिस रात ओसामा बिन लादेन को अमेरिकन सील कमांडर ने पाकिस्तान के उसके घर मे घुस कर मारा <=
ब्लैक हॉक
क्य्रू टीम के प्रमुख ने दरवाजा
खोला। मैं उन्हें देख सकता
था। नाइट वीजन चश्में से उनकी
आंखें ढकी हुई थीं और उनकी एक
उंगली इशारा करने के लिए उठी
थी। मैंने आस-पास
देखा, हमारी सील
मेंम्बर्स हेलिकॉप्टर से
इशारा दे रहे थे।
Twin Towers |
कैबिन में
इंजन से निकल रही घर्राहट की आवाज भरी
हुई थी। ब्लैक हॉक के ब्लेड्स
के हवा में नाचने की आवाज को
छोड़कर कुछ भी सुन पाना नामुमकिन
था। सतह और अबोटाबाद शहर का
मुआयना करने की कोशिश में जैसे
ही मैं हेलिकॉप्टर से बाहर
की ओर झुका, हवा का
तेज थपेड़ा मुझे लगा।
कुछ डेढ़
घंटे पहले हमलोग दो MH-60 ब्लैक
हॉक में सवार होकर अंधेरी रात
में निकले थे। अफगानिस्तान
के जलालाबाद बेस से पाकिस्तानी
बॉर्डर की यह एक संक्षिप्त
यात्रा थी। और फिर पाकिस्तान
बोर्डर से एक घंटे की फ्लाइट
हमारे उस लक्ष्य तक पहुंचने
के लिए जिसकी सैटेलाइट तस्वीरों
को हम पिछले कई हफ्तों से खंगाल
रहे थे। कॉकपिट से आ रही रौशनी
को छोड़कर, कैबिन
में घुप अंधेरा छाया था। मैं
बांयी ओर दरवाजे से चिपका हुआ
था, जगह इतनी कम कि
ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था। हेलिकॉप्टर का वजन कम
करने के लिए कुर्सियां हटा
दी गयी थीं। बैठने के लिए हमारे
पास अब फ्लोर बचा था या कुछ
छोटी कैम्प कुर्सियां जिन्हें
हमने ऑपरेशन से पहले
स्थानीय स्पोर्ट्स दुकान से
खरीदी थीं।
कैबिन के
किनारे से टिके-टिके
मैंने दरवाजे से बाहर अपना
पैर फैलाने की कोशिश की,
ताकि उनमें खून का
प्रवाह बना रहा। मेरे पैर बुरी
तरह से जकड़े हुए थे, और
वे सुन्न पड़ गए थे। मेरे साथ
मेरे केबिन में और दूसरे
हेलिकॉप्टर मे नेवल स्पेशल
वॉरफेयर डेवलपमेंट ग्रुप से
मेरे 23 टीममेट्स
थे। इससे पहले भी इनके साथ मैं
दर्जनों ऑपरेशन में शामिल हो
चुका था। उनमें से कुछ को तो
में दस या उससे भी अधिक वर्षों
से जानता था। मैं उन सभी पर
पूरी तरह विश्वास करता था।
पांच मिनट पहले पूरा कैबिन
जीवंत हो उठा था। हमने अपने
हेलमेट्स पहने, रेडियो
को जांचा और फिर अपने हथियारों
पर आखिरी नजर मारी।
मैं 60 पाउंड्स
का गियर पहना था,
जिसमें से
प्रत्येक ग्राम विशेष उद्देश्यों
के लिए सतर्कतापूर्वक चुना
गया था।
Cover page of No Easy Day |
हमारे
स्कवेड्रन के सबसे अधिक अनुभवी
लोगों में से इस टीम को चुना
गया था। पिछले 48 घंटों
में हमने अपने हथियारों और
औजारों को कई बार चेक किया और इस तरह से अब हम अपने
अभियान के लिए पूरी तरह से
तैयार थे। यह एक ऐसा मिशन था
जिसके लिए मैं उसी दिन से तैयार
था जब सितंबर 11, 2001 को
मैंने अपने ओकिनावा के बैरक
में टीवी पर ट्विन टॉवर हमले
का द़श्य देखा था।
मैं
ट्रेनिंग से लौटा ही था और
अपने रूम में जाते ही नजर टीवी
पर गई। जहाज वर्ल्ड ट्रेड
सेंटर से टकरा रहा था। मैने
बिल्डिंग के दूसरी ओर से आग
का गोला निकलते देखा,
धूएं का गुब्बार
बिल्डिंग से निकल रहा था।
घर में बैठे लाखों अमेरिकन्स की तरह, मैं अविश्वास की मुद्रा में इस हमले को देखता रहा। दिन के बांकि हिस्सों में मैं टीवी के सामने ही टिका रहा, और मेरा दिमाग यह समझने की कोशिश में लगा रहा कि टीवी में जो भी देखा क्या वो सच था।
एक प्लेन
क्रैश, दुर्घटना
हो सकती है। टीवी न्यूज ने यह
बता दिया कि दूसरे प्लेने के
टकराते ही, मैने जो
मतलब निकाला था, वो
बिल्कुल सच था।
टावर से
टकराता दूसरा प्लेन, बिना
शक एक हमला था। ऐसा दुर्घटनावश
नहीं हो सकता था। 11 सितंबर,
2001 को सील कमांडर
के तौर पर मैं अपनी पहली तैनाती
में था। जिस तरह से ओसामा बिन
लादेन का नाम हमले में लिया
जा रहा था, मैने
सोचा कि मेरी यूनिट को अगले
ही दिन अफगानिस्तान जाने का
आदश मिलेगा। पिछले डेढ़ सालों
से तैनाती के लिए हमारी तैयारी
चल रही थी।
हमारी
ट्रेनिंग, थाइलैंड,
फिलिपिन्स, ईस्ट
तिमोर, और ऑस्ट्रेलिया
में पिछले कई हफ्तों तक होती
रही। टीवी में हमले की तस्वीर
देखते-देखते ऐसा
लगा कि मैं ओकिनावा से अफगानिस्तान
पहुंच गया और वहां अलकायदा
के हमलावरों के पड़ा हूं। लेकिन, अफगानिस्तान
जाने का आदेश हमें कभी नहीं
मिला। मैं फ्रस्ट्रेट हो गया
था। मैंने इतनी लंबी और मुश्किल
ट्रेनिंग इसलिए नहीं ली थी,
कि सील बन जाउं और फिर
टीवी पर हमले का दृश्य देखूं।
लेकिन अपना फ्रस्ट्रेशन मैने
अपनी परिवार या मित्रों पर
जाहिर होने नहीं दिया। वे
मुझसे पूछते थे कि मैं अफगानिस्तान
जा रहा था या नहीं। उनके लिए
मैं एक सील था और वे सोचते थे
कि तुरंत ही मेरी तैनाती
अफगानिस्तान में हो जाएगी।
मुझे याद
है जब मैने अपनी गर्लफ्रेंड
को ई-मेल भेजा था
और जिसमें मैने उस समय के खराब
हालात को समझाने की कोशिश की
थी। हम वर्तमान तैनाती के खत्म
होने की बात कर रहे थे, जिसके
बाद मुझे घर जाने का मौका मिलता
और मुझे अगली तैनाती तक घर में
रहने का मौका पाता। "मुझे
एक महीने का मौका मिला है”,
मैने लिखा। "मैं
जल्द ही घर आउंगा अगर मुझे बिन
लादेन को मारने को ना कहा जाए”।
यह एक ऐसा मजाक था जो उन दिनों
कई बार सुनने को मिलता था।
और अब जबकि
ब्लैक हॉक हमारे लक्ष्य की
ओर उड़ चला था, मैं
पिछले दस वर्षों के बारे में
सोचने लगा। जबसे हमला हुआ था,
हमारे क्षेत्र में
काम करनेवाला सभी लोग इस तरह
के अभियान में शामिल होने का
सपना देखा करता था।
उस
दौर में वे सब जिनसे हम लड़ते
थे, कहीं
न कहीं अलकायदा लीडर से प्रभावित
होते थे। वो लोगों को जहाज
बिल्डिंग में टकराने के लिए
प्रेरित करने में सक्षम था।
इस तरह का फनैटसिटम डरावना
होता है, और
जैसा कि मैने देखा, ट्विन
टावर्स ध्वस्त हो गए, और
फिर वाशिंगटन डीसी और
पेनिनसेल्वेनिया में हमले
की खबर आई। मैं समझ गया कि हम
अब युद्द में हैं, एक
ऐसा युद्द जिसे हमने नहीं चुना
है। बहुत सारे बहादुर लोगों
ने वर्षों तक युद्ध करते हुए
अपने बलिदान दिए, उन्हें
इसका जरा भी अंदाजा नहीं था
कि हम उस अभियान का हिस्सा कभी
बन पाएंगे जो अब शुरू होनेवाला
था।
हमले
के एक दशक बाद, और
लगभग पिछले आठ वर्षों तक अलकायदा
के लड़ाकों को खोज-खोजकर
मारने के बाद, हम
बिन लादेन के कम्पाउंड में
रस्सी के सहारे प्रवेश करने
से कुछ मिनट की दूरी पर थे।
हेलिकॉप्टर में बंधी रस्सी
को पकड़ते वक्त मुझे मेरे पैर
के अंगुठे में रक्तप्रवाह
होने का एहसास हुआ।
मुझे से
पहले एक स्निपर था, जिसका
एक पैरा हेलिकॉप्टर के बाहर
लटक रहा था और दूसरा अंदर,
ताकि हेलिकॉप्टर से
बाहर निकलने के रास्ते में
अधिक कमांडोस आ सकें। उसके
हथियार का बैरल कंपाउंड में
अपना शिकार तलाश रहा था। कंपाउंड
के दक्षिणी हिस्से को कवर करने
का काम उसका था ताकि, असॉल्ट
टीम रस्सी के सहारे आंगन में
उतर सकें और अपने-अपने
हिस्से के कार्यों को पूरा
करने के लिए अलग-अलग
दिशा में बढ़ें।
एक-आध
दिन पहले तक हममें से किसी को
यह भरोसा नहीं था कि वाशिंगटन
इस अभियान को अपनी मंजूरी
देगा। लेकिन कई हफ्तों के
इंताजर के बाद, हम
कंपाउंड से अब कुछ ही मिनटों
की दूरी पर थे। खूफिया एजेंसियों
के मुताबिक, हमारा
लक्ष्य इसी कंपाउंड में होगा।
मुझे ऐसा लगा कि वह यहां होगा।
लेकिन, कुछ भी हो
सकता था और इसमें आश्चर्य करने
का प्रश्न ही नहीं था।
हमें पहले
भी एक-दो बार ऐसा
लगा था कि हम काफी करीब हैं।
मैं 2007 में भी,
कथित बिना लादेन के
पीछे एक हफ्ते तक रह चुका था।
हमें सूचना मिली थी कि, वह
पाकिस्तान से हमेशा के लिए
फिर से अफगानिस्तान आ रहा था।
एक सोर्स ने बताया था कि उसने
एक सफेद पोशाक वाले व्यक्ति
को पहाड़ों में देखा था। लेकिन
कई हफ्तों तक उसके पीछे भागने
के बाद, पूरा अभियान
निरर्थक निकला।
लेकिन
इस बार का अभियान अलग था। हमारे
रवाना होने से पहले, CIA
की एक विश्लेषक,
जो अबोटाबाद
के लक्ष्य को ट्रैक करने के
पीछे मुख्य ताकत थीं, ने
बताया कि वे 100 फीसदी
सुनिश्चित थीं, कि
वह वहीं था। लेकिन अब यह महत्व
नहीं रखता था। हम उस घर से कुछ
सेकंड की दूरी पर थे, और
जो कोई भी उस घर में था,
उसपर ये रात
काफी भारी परने वाली थी।
मिशन ओसामा में शामिल अमेरिकन नेवी सील कमांडर मार्क ओवेन (छद्म नाम) की किताब No Easy Day से साभार
अनुवाद: मनीष
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