Wednesday, December 18, 2013

कांग्रेस की हार जनता का मजाक बनाने वाले दलों के लिए एक सबक

गलथेथरई कर अरनब गोस्वामी या रविश कुमार के टीवी शो का डिबेट जीता जा सकता है चुनाव नहीं । राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ और दिल्ली में आए विधानसभा के चुनाव परिणामों ने इसे साबित कर दिया है। यह बीजेपी की जीत है, 'आप' की जीत है ,लेकिन इन सबसे अधिक अधिक यह कांग्रेस की हार है।
 
यूपीए दो की सरकार में एक से बढकर एक घोटाले हुए। लेकिन कांग्रेस के नेता नीरो की तरह चैन की बांसुरी बजा रहे थे, वे कुछ इस अंदाज में हंस रहे थे जैसे , 'हाथी चले बाजार तो कुत्ता भूंके हजार'। लोग चिल्ला रहे थे, लेकिन सरकार और कांग्रेस पार्टी अपना सारा दम भ्रष्टाचारियों को बचाने में लगा रही थी। कांग्रेस को भ्रष्टाचारियों को बचाते देख, जनता नें उनकी बैंड बजाने का फैसला कर लिया।

महंगाई कई गुणा बढ़ गई, कांग्रेस के नेता इसका दोष विरोधी पार्टी की सरकार वाले राज्यो के मत्थे मढ़ अपनी जिम्मेदारियों से मुंह चुराते रहे। डीजल, पेट्रोल, एलपीजी के दाम बढ़ गये। लेकिन सरकार अर्थव्यवस्था सुधारने के नाम पर गरीबों के घर में चूल्हों की आग बुझाने में लगी रही। हम बातचीत में संदर्भ देते हैं "हाथ घुमा कर नाक छुना"। एलपीजी सब्सिडी का मसला भी ऐसा ही हो गया। 
केवल लोगो को यह जताने के लिए कि केन्द्र की सरकार जो सब्सिडी दे रही है जनता को उसका ऐहसास हो, कांग्रेस ने सब्सिडी को बैंक अकाउंट में डालने का फैसला कर लिया। फायदा तो नहीं मिला लोगों का झंझट और बढ़ गया, आधार कार्ड बनबाओ, फिर इसे बैंक से कनेक्ट करना और फिर बैंक और गैस कनेक्शन को जोड़ना। नौकरीपेशा लोगों के लिए जिन्हें एक दिन भी छुट्टी लेना भारी पड़ता है, दो से तीन दिन केवल इसके लिए देने पड़े। फायदा क्या होना, ढ़ाक के तीन पात। कांग्रेस अगर जनता की समस्या बढ़ाएगी तो जनता छोड़ेगी कैसे। चुनावी परिणामों ने कांग्रेस में खलबली मजा दी है। सोनियां-राहुल के खिलाफ भी विरोध के स्वर उठ खड़े हुए हैं।

आपने एक बात पर ध्यान दिया ? "आम जनता को फ्री में अनाज नहीं चाहिए।" ऐसा मैं नहीं छत्तीगढ़ विधानसभा का चुनावी नतीजा बता रहा है। कांग्रेस ने राज्य की जनता से सरकार में आने पर मुफ्त में अनाज देने का वायदा किया था। लेकिन फिर भी जीत बीजेपी की हुई। आम जनता कांग्रेस से इस हद तक नाराज है कि 1) सत्ता विरोधी लहर 2) परिवर्तन यात्रा पर हुए हमले से उपजी सहानुभूति और 3) मुफ्त अनाज के वायदे के बाद भी, जनता नें रमन सिंह को फिर से मौका देना पसंद किया। हालात बदलो तुष्टिकरण मत करो। शायद जनता यही कांग्रेस को सिखाना चाह रही है।

जिस मनरेगा का ढ़ोल कांग्रेस पीट रही है, उसकी हकीकत इतनी भर है कि अगर मनरेगा का मजदूरी 100 रुपये है तो मजदूर और सरकारी आदमी बिना किसी काम के मजदूरी का आधा-आधा हिस्सा बांट लेता है। मजदूर को बिना काम किए ताड़ी पीने का पैसा मिल गया और सरकारी अधिकारियों के जेब भी भर गये। यह मनरेगा की हकीकत है।

अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग मुद्दे होते हैं, लेकिन इस बार के चुनाव में राज्यों के मुद्दे कम नजर आए। एक सामान्य राष्ट्रीय मामले विधानसभा चुनाव में हावी रहे। इसे कांग्रेस सरकारों की असफलता कह लें या नरेन्द्र मोदी की जीत, विधानसभा चुनाव इस बार राष्ट्रीय मुद्दों पर ही लड़ा गया।

ऐसा नहीं था कि मध्यप्रदेश की चौहान सरकार की तुलना में राजस्थान में गहलोत की सरकार ने कम काम किये हों। दिल्ली में रहनेवाले कहते हैं कि शीला दीक्षित की सरकार का काम भी बहुत बुरा नहीं था। लेकिन जनता ने गर्दन पर हाथ रख गहलोत और शाली सरकार को हटाया तो इसकी सबसे बड़ी वजह यही थी कि ये चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर केन्द्रित थे। महंगाई, भ्रष्टाचार जैसे आम लोगों के मुद्दों पर पर कांग्रेसी नेताओं की 'नीरों' बननेवाली प्रवित्ति ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ सभी जगहों पर एक सा लहर पैदा कर दिया। केन्द्र की यूपीए सरकार ने जो पाप पांच साल पास किये है उसका प्रायश्चित तो कांग्रेस की सभी सरकारों --राज्य हो या केन्द्र-- को करना ही होगा। उन्हें इतनी सी बात समझ में नहीं आई कि जनता सब जानती है।

पीएस : कोई भी सरकार या पार्टी जनता को मुर्ख समझने की कोशिश ना करें। जब तक आप पकड़े नहीं गये तभी तक आप बचे हैं । नेताओं को किनारे करने के लिए कुछ खास नहीं करना है ,बस उनके नाम के सामने के बटन को ना दबाकर दूसरे के सामने का बटन को दबाना है। और अब यह मजबूरी भी खत्म होती ही जा रही है कि किसी ना किसी को चुनना ही हो। अब एक 'नोटा' बटन भी आ गया है। अगर सारे प्रत्याशी खराब हैं तो नोटा दबाओ और उनको भगाओ।

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