दिपावली
की हार्दिक शुभकामनाएं
Thursday, October 23, 2014
Saturday, October 18, 2014
नतीजा आने
से पहले इस तरह का लिखना एक बड़ा खतरा होता है...।
आपको एक का पक्ष लेने का आरोपी
ठहराया जा सकता है.. लेकिन
अपनी नजरों से जो दिखे.. उसे
लिखने से अगर कोई आरोप लगे तो
वो शिरोधार्य है...।
महाराष्ट्र
से इस बार मराठी साफ हैं..।
(माफ करें महाराष्ट्र
के आम जनता) मैं उन
मराठियों की बात नहीं कर रहा
जो इस उम्मीद से वोट देते हैं
कि हालात बदलेंगे..।
मैं उन मारठियों की
बात नहीं कर रहा जो दिन भर इस
उम्मीद से मेहनत करते हैं कि
उनके बच्चे हमेशा सबसे आगे
रहेंगे, मैं
उन मराठियों की बात नहीं कर
रहा... जो
इस उम्मीद में मेहनत किए जाते
हैं कि उनके बच्चे खेल कूद कर
सबसे आगे बढ़ें...।
मैं उन मराठियों की बात भी
नहीं कर रहा जो दिन भर खेतों
में लगे रहते हैं.. इस
उम्मीद से कि वे सबसे आगे
रहेंगे..।
दरअसल
मैं उन मराठियों की बात कर रहा
हूं... जो
जो महाराष्ट्र के करोड़ों
लोगों की ठेकेदारी दशकों से
ले रखे हैं.... और
उनके लिए कुछ करने की बजाय
अपना घर भरने में लगे हैं...।
मैं उन मराठियों की बात कर रहा
हूं... जिनसे
जब हिसाब मांगा जाता है...
तो बिहारियों
और यूपी के भैयों को पीटकर
जवाब देते हैं... कि
नौकरी तो सारे यूपी के भैया
और बिहारी खा गए...।
लेकिन वो भूल जाते हैं कि उनकी
कंपनियों में सबसे अधिक ये
भैये काम करते हैं... और
मुनाफे की कमाई अपनी पेटों
में हजम किए बैठ जाते हैं।
इतिहास
उलट के देखिए... मराठियों
की बहादुरी और जिंदादिली आपको
देश में सबसे ऊपर दिखेगा..।
लेकिन दिक्कत तब से शुरू हुई
जब से उन बहादुरी और जिंदादिली
को बेईमान नेताओं ने बुजदिली
में बदल दिया..।
उन बहादुरी का इस्तेमाल सिर्फ
निर्दोषों को पीटने में लगाया
गया...।
ताकत का इस्तेमाल सकारात्मक
दिशा में होने के खतरे को महसूस
करते देख उसे निर्दोषों के
खिलाफ मोड़ दिया गया...।
भाजपा
और शिवसेना का गठबंदन टूट
गया... कांग्रेस
और एनसीपी का गठबंधन टूट गया..।
बाला साहेब के बेटा और भतीजा
एक साथ मिल गये... औपचारिक
घोषणा भले ही ना हुई हो...
सामने तो कम
से कम यही आ रहा है... बेचारा
बाला साहब इस उम्मीद को अपने
हृदय मे दबाए दिवंकत हो गये
कि उनका भतीजा राज ठाकरे,
जिसे उन्होंने
पाला-पोसा
और आगे बढ़ाया, उनके
बेटे-- उद्धव
को अपना नेता मान ले..।
बात
करते हैं शरद पवार की...।
जरा किताब पलट कर देख लीजिए..
। सोनिया गांधी
के खिलाफ विदेशी मूल का होने
के मसले पर पवार के विरोध को
याद कीजिए..।
पूराने कांग्रेसी शरद पवार
का पार्टी नेतृत्व के खिलाफ
विद्रोह का यह पहला मामला नहीं
था..। 36 साल की उम्र में पहली बार महाराष्ट्र का मुख्यंत्री बने शरद पवार
कभी कांग्रेस नेतृत्व के काबू
में नहीं रहे...।
अपनी अपार नेतृत्व क्षमता का
उपयोग उन्होंने सिर्फ अपनी
राजनैतिक महत्वाकांक्षा को
पूरी करने और अकूत संपत्ति
को इकट्ठा करने में किया...।
इस
बात का उनके पास कोई जवाब नहीं
है कि जब सोनिया गांधी के
नेतृत्व को उन्होंने विदेश
मूल के होने के मुद्दे पर
चुनौति दी और पार्टी को अलविदा
कह दिया तो फिर उसी नेतृत्व
की सरकार को क्यों दस वर्षों
तक समर्थन देते रहे...।
इतना ही नहीं.. शरद
पवार उस मंत्रालय के मंत्री
भी बने रहे जिस पर किसानों को
आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी
होती है... उन्हीं
के कार्यकाल में विदर्भ में
किसान लगातार अपनी दुर्दशा
से पीड़ित होकर जान देते रहे...
और पवार अपनी
योग्यता का इस्तेमाल कभी अपने
भतीजे अजीत पवार के समर्थन
में... तो
कभी उनके खिलाफ करते रहे...।
कभी अपनी बेटी को आगे बढा रहे
थे तो कभी अपने वित्तीय प्रबंधक
प्रफुल्ल पटेल के हित को साधने
में...।
थोड़ा
पीछे चलें...।
लोकसभा चुनाव 2014. दोनो
चचेरे भाई मोदी की तारीफ में
लगे थे..।
हालांकि उन्हें उम्मीद नहीं
थी.. लेकिन
बीजेपी की सफलता ने उन्हें
आश्चर्यचकित कर दिा...।
और फिर लोकसभा चुनाव आया...।
दशकों
से महाराष्ट्र की राज्य राजनीति
में पवार और ठाकरे के खिलाफ
कोई मुंह नहीं खोल पाता था...।
पहली बार ऐसा लगा कि राज्य की
राजनीति में इनकी भूमिका नगण्य
होती जा रही है...।
हार
को आसन्न देख शरद पवार ने अपनी
पार्टी का गठबंधन कांग्रेस
से तोड़ दिया..।
इस गठबंधन को तोड़ना तो बहाना
था.. । शरद
पवार दरअसल एक अव्वल दरजे के
व्यापारी हैं.. असली
व्यापारी सत्ता से कभी दूर
नहीं होता सो भाजपा से गठबंधन
बढ़ाने की चाहत में उन्होंने
कमजोर होते जा रही कांग्रेस
को अलविदा कह दिया...।
मतलब राज्य की राजनीति में
पवार की भुमिका नगण्य...।
शिवसेना इस उम्मीद में थी कि
भाजपा अंत में उनकी शर्तों
को मान लेगी... लेकिन
नरेंद्र मोदी की सफलता से झूम
रही भाजपा... अब
शिवसेना को छोड़कर भी अपने
लिए राज्य में एक सुखद भविष्य
देखने लगी...।
प्रमोद
महाजन और गोपीनाथ मुंडे के
असामयिक निधन से राज्य में
भाजपा को काभी चोट पहुंचा..।
और पार्टी में स्थानीय प्रभावशील
नेता का अभाव हो गया..।
लेकिन नरेंद्र मोदी के उदय
ने राज्य भाजपा को उम्मीद की
एक रौशनी दे दी... और
पहली बार ऐसा लगा कि महाराष्ट्र
में भाजपा सरकार बना सकती है
अथवा सबसे महत्वपूर्ण भुमिका
में आ सकती है...।
लेकिन इस प्रभाव में ना तो
पवार प्रभावशाली होंगे..
ना ही ठाकरे...।
क्योंकि नरेंद्र मोदी के नाम
पर यह जीत होगी... और
राज्य की भाजपा नेतृत्व केंद्र
पर निर्भर रहेगी... जाहिर
है कि राज्य की राजनीति केंद्र
की गैर मराठा नेतृत्व से संचालित
होगा... ।
यह
छटपटाहट ही है कि ... पवार और ठाकरे... चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के बरक्स
भाजपा के प्रति अधिक हमलावर
बने रहे..।
राजनीति में जानी दुश्मन जैसे
बन चुके राज और उद्धव भी कांग्रेस
और पवार का विरोध छोड़ मोदी
के प्रति हमलावर हो उठे और यह
संकेद देने लगे कि वे आपस मे
हाथ मिला लेंगे...।
और अब जबकि चुनाव परिणाम आने में कुछ घंटों को समय शेष है... उद्धव फिर से नरम हो चुके हैं...। साफ है.. अपनी राजनीति चलती रहे यह ज्यादा जरूरी है.. बांकी सब बाद में....................
Wednesday, October 15, 2014
एग्जिट पोल
महाराष्ट्रा विधानसभा चुनाव-2014 के लिए आज (15-10-14) मतदान संपन्न हो गए। कुल 288 सीटों के महा विधानसभा चुनाव में 54.5 फीसदी लोगों ने वोट डाले...
चुनावोपरांत कराए गए एग्जिट पोल के नतीजे...
Times Now-C Voter | India TV-C Voter | News 24-Chanakya | India News-Axis Survey | India Today Group-Cicero | ABP News-Nielsen | |
BJP | 138 | 133-143 | 151 | 103 | 117-131 | 144 |
INC | 41 | 36-46 | 27 | 45 | 30-40 | 30 |
SS | 59 | 54-64 | 71 | 88 | 66-76 | 77 |
NCP | 30 | 25-35 | 28 | 35 | 24-34 | 29 |
MNS | 12 | 09 to 15 | 5 (MNS others) | 5 | 04 to 10 | 3 |
Friday, October 10, 2014
मुश्किल होता हरियाणा का चुनावी संग्राम
15 अक्टूबर
को होने जा रहे हरियाणा विधानसभा
चुनाव में अब कुछ ही दिन बचे
हैं...।
चुनावी चकल्लस अपने चरम पर
है...।
प्रधानमंत्री से लेकर राहुल
गांधी और दूसरे दलों के बड़े-बड़े
धुरंधर नेता धूंआधार चुनाव
प्रचार में जुटे हुए हैं...।
पिछले दस सालों से हरियाणा
में सरकार चला रही कांग्रेस
के लिए मुकाबला काफी मुश्किल
होता दिख रहा है...। हां, एक
बात यह भी है कि कांग्रेस अब
उतनी कमजोर भी नहीं दिख रही
है जितनी की शुरुआती दिनों
में नजर आ रही थी..।
कांग्रेस का चुनावी अभियान
मुख्यमंत्री हुड्डा के
इर्द-गिर्द
ही घूम रहा है है..।
कांग्रेस के राज्य नेतृत्व
में हुड्डा दरअसल अकेले छोड़
दिये गये हैं...।
टिकट बंटवारे में दूसरे नेताओं
की अनदेखी से हुड्डा को चुनावी
मैदान में अपनी पार्टी के भीतर
ही अधिक चुनौतियां मिल रही
हैं..।
राहुल गांधी के खास माने जाने
वाले प्रदेश अध्यक्ष अशोक
तंवर भी पूरे मन से प्रचार में
नहीं जुटे हैं..।
कुमारी सैलजा, प्रचार
करने की वजाय अपना ध्यान इस
बात पर अधिक लगा रही हैं कि
चुनाव के बाद अगर कांग्रेस
सत्ता में वापस आती है तो.....
हुड्डा का
पत्ता किस तरह कटवाया जाए...
। लगे हाथों
सैलजा यह जताना भी नहीं भूलतीं
कि पार्टी चुनावी मैदान में
हुड्डा के दस सालों के परफॉर्मेंस
के आधार पर है, इसलिए
अगर पार्टी चुनाव में हारती
भी है तो जिम्मेदारी सिर्फ
हुड्डा की होगी...।
2014 के
चुनावी अभियान में चौटाला की
पार्टी हमेशा से सबसे आगे चल
रही थी..।
सबसे पहले उम्मीदवारों की
घोषणा और फिर चुनावी अभियान
की शुरुआत भी..।
इंडियन नेशनल लोकदल चुनाव
जीतने के लिए कोई कोर कसर नहीं
छोड़ना चाहती..।
व्यक्ति आधारित पार्टी के
साथ सत्ता से बाहर रहने के बाद
अपनी प्रासंगिता बनाए रखने
की चुनौति होती है..।
दस सालों से सत्ता से बाहर रही
आईएनएलडी से अधिक इस बात को
और कौन जान सकती है..।
इसलिए पार्टी ने इस बार के
चुनावी अभियान में अपना सर्वस्व
झोंक दिया है..।
यहां तक कि खराब स्वास्थ्य
के आधार पर जेल से जमानत पाए
ओमप्रकाश चौटाल भी खुद को
चुनावी मैदान से दूर नहीं रख
पाए..।
चौटाला अभी नहीं तो कभी नहीं
के आधार पर अपनी पार्टी का
चुनावी अभियान चला रहे हैं...।
आईएनएलडी का अपना एक आधार
है... और
फिर चैौटाला के जेल से बाहर
निकलने से ... पार्टी
उस हताशा से उबरने का प्रयास
तेजी से कर रही है जो...
ओमप्रकाश और
बेटे अजय चौटाला के सजायाफ्ता
होने से पैदा हुई थी..।
ओमप्रकाश चौटाला को जेल में
फिर से डालने के लिए कानूनी
प्रयास बहुत तेजी से हो रहे
हैं... लेकिन
चुनावी लड़ाई अब उस जगह पर
पहुंच चुकी है जहां...
चौटाला जेल
जाकर भी अपनी पार्टी का भला
करवा जाएंगे..।
लोकसभा
चुनाव में दस में से सात सीटें
जीतने वाली पार्टी भाजपा एक
बार फिर से मोदी के नाम के सहारे
है..।
विधानसभा चुनाव में पार्टी
के पक्ष में जो भी माहौल है
उसमें सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी की रैलियों का
हाथ है..।
शायद यह पहली बार हो रहा है
जबकि कोई प्रधानमंत्री किसी
विधानसभा चुनाव में इस तरह
से व्यापक पैमाने पर चुनावी
रैलियां कर रहा हो..।
राज्य में विपक्ष में होने
के नाते जो एकजुटता होनी चाहिए
उसकी कलई इस बात से खुल जाती
है कि अमित शाह किसी भी व्यक्ति
को मुख्यमंत्री के रूप में
आगे करने का साहस नहीं जुटा
पाए..।
दूसरे दलों से आए नेता जहां
सीएम की कुर्सी पर निशाना
गड़ाए हुए हैं.. वहीं
पार्टी के पुराने नेता जैसे
अनिल विज, रामविलास
शर्मा, मनोहर
लाल खट्टर भी ताल ठोक रहे
हैं...।
चुनावी अभियान को देखें तो
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष
अमित शाह... कैप्टन
अभिमन्यु की तरफ ईशारा कर चुके
हैं..।
लेकिन लोकसभा चुनाव में कैप्टन
अभिमन्यु की करारी हार,
स्थानीय लोगों
में उनके प्रभाव का अभाव और
भाजपा की स्थानीय राजनीति की
उलझनें... अमित
शाह को प्रत्यक्ष तौर से किसी
नेता का आगे करने से रोक रही
है..।
कुलदीप
बिश्नोई की पार्टी हरियाणा
जनहित कांग्रेस (हजकां)
खुद को चुनावी
मैदान से बाहर मानकर चल रही
है.. ..।
पार्टी की चुनावी गतिविधियां
कुच उन क्षेत्रों तक सीमित
हो कर रह गई हैं जहां से परिवार
के लोग चुनावी मैदान में हैं
या जो पार्टी का पुराना किला
रही है..।
गठबंधन टूटने का असल बीजेपी
को भी झेलना पड़ सकता है...।
लेकिन हजकां राजनीतिक हाशिए
पर पहुंच गई है..।
अगर हजकां का चुनावी नतीजा
अच्चा नहीं रहा (जैसा
होता अभी दिख रहा है), तो
बिश्नोई को व्यक्तिगत राजनीति
को चलाने के लिए भी किसी दूसरी
पार्टी का दामन थामना पड़ सकता
है।
Monday, October 6, 2014
कहीं उम्मीद की किरण दिख रही है? मुझे तो बिल्कुल नहीं.....।
समझ आया तो खुद को
लालू राज में पाया....।
लालू चालीसा,
माय समीकरण,
विकास करने से वोट नहीं
मिलता.... जैसी
बातें फिजा में गूंजा करतीं।
डीएम-एसपी
से मुख्यमंत्री पांव छुआते..।
रेप, लूट,
मर्डर,
किडनैपिंग...
जैसी बातें इटरटेनमेंट की
घटनाएं होतीं..।
अगड़ी जातियों और पिछड़ी
जातियों के बीच खूना-खच्चर,
समाज में तनाव ऐसा कि दूसरे
को देखते ही खा जाने को दौड़े...।
राजनीति में अपराध अपने चरम
पर, रंग-बिरंगे
अपराधी और नेता कुकुरमुत्ते
की तरह सड़कों पर फैले हुए
थे..। किसी
के पीछे माय की मजबूरी थी...
तो किसी के पीछे बाप का हाथ
था...।
सड़कों से गायब होते जा रहे थे सड़क, बचे थे तो सिर्फ गडढ़े और उनमें भरे कीचड़। कल-कारखाने जो भी थे बंद होते जा रहे थे... कंपनियों के शो रूम लूटे जा रहे थे...। स्कूल से छात्र दूर भागते जा रहे थे... क्योंकि पास होने के लिए ना तो स्कूल जाना जरूरी था और ना ही पढ़ाई करना। और फिर पढ़ के होना भी क्या था...। ना तो छात्र स्कूल जाते और ना ही अध्यापक...। घर में बैठे-बैठे सबकुछ हो जाता...। छात्रों के पास पढ़ाई नहीं, जाहिर है काम भी नहीं... तो अपराध की ओर रुझान पढ़ता गया...। फिर अपराधियों का बनता हेडलाइन्स, पैसा और नाम कमाने का आसान जरिया सुझा रहा था ।
जो इन चीजों को
बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे....
वे बहुत तेजी से पलायन करते
जा रहे थे... ।
मुंबई, पूने,
दिल्ली,
कलकत्ता,
लुधियाना,
जालंधर, सूरत,
अहमदाबाद...
जिसे जहां जगह मिल रहा था...
वहीं पर खुद को खपाता जा
रहा था। दूसरे राज्यों में
खेत, कंस्ट्रक्शन,
फैक्ट्री तक में बिहारी
मजदूर अपनी तकदीर संवारने की
कोशिश में खुद को खपाते जा रहे
थे।,
राजस्थान और दक्षिण राज्यों
में जाकर छात्र इस दौरान लगातार
अपने भविष्य को संवारने के
लिए जूझ रहे थे...।
एक तो घर से दूर रहने की पीड़ा,
पैसों की कमी और ऊपर से दागी
या फिर बदनाम राज्य के होने
से मिलने वाले ताने....
छात्रों की जिंदगी को कठिन
कर रखा था.
दिल्ली
दिल्ली
कुल मिलाकर घटाटोप
अंधेरा... चारो
ओर...। रोशनी
की एक भी किरण नहीं...।
यह एक विनाश चक्र था...।
कहीं से भी शुरुआत करो...
अंत में फिर अंधेरा..।
लेकिन इस अंधेरे में भी कुछ
लोग थे जो लगातार अंधेरे को
चीरने का प्रयास कर रहे थे।
वे अंधेरे के साम्राज्य को
तोड़ने के लिए जीतोड़ प्रयास
कर रहे थे..।
और फिर चक्र चलते-चलते
ऐसी जगह पहुंचा...
जहां से बंद गवाक्षों के
पट खुलते दिखे...।
उम्मीद की किरणें सर उठाने
लगीं...। सरकार
बदली... सत्ता
में बदलाव हुआ तो लगा कि व्यवस्था
भी बदलेग...।
कुछ हद तक बदली भी...।
लेकिन पीछले कई
दशकों में कहीं कुछ ऐसा जरूर
नष्ट हो गया था....
जो बदलाव के बाद भी चीजों
को संवरने या फिर सामान होने
नहीं दे रहा था। ऐसा लग रहा
मानो प्रदेश का स्पर्म ही
दूषित हो गया हो...
धरती शापित हो गई हो..।
तमाम प्रयासों के बाद भी कुछ
अच्छा नहीं हो पा रहा...।
जब लग रहा था कि
कुछ ठीग होगा..।
एक व्यक्ति ने अपने अहंकार
की वजह से सबकुछ नष्ट कर दिया...।
ऐसा लग रहा है कि जैसे पानी
भरे बाल्टी को कुएं से आधा
निकालने के बाद रस्सी क साथ
ही बीच रास्ते छोड़ दिया गया
हो...। और बाल्टी
पानी में डूब गया हो..।
ऊपर निकालने की संभावना
क्षीण...।
प्रदेश का मुख्यमंत्री
एक ऐसे व्यक्ति को बना दिया
गया..... जिसके
साथ सहानुभूति सिर्फ उसकी
जाति की वजह से हो सकती है..।
जिसने हमेशा शोषण का दंश झेला
है...। लेकिन
क्या किसी शोषित को सिर्फ
इसलिए 10 करोड़
लोगों के भाग्य का विधाता बना
दिया जाए...क्योंकि
उसके पूर्वजों के साथ कभी शोषण
हुआ था.., क्योंकि
वह समाज के सबसे कमजोर वर्ग
से आता है...।
लेकिन कोई क्या यह बताएगा कि
बाकि लोगों की क्या गलती है...
वह क्यों सजा पाए...???
कुछ बानगी देखिए.....
राज्य सूखे से
कराह रहा है...
किसान त्राहिमाम कर रहे
हैं... और प्रदेश
के अधिकारी आंखों पर काला
चश्मा लगाए मुख्यमंत्री को
सावन की हरियाली दिखा रहे
हैं..। हद तो
यह है कि मुख्यमंत्री सब जानते
हुए कुछ नहीं कर पा रहा...।
मुख्यमंत्री लाचार,
बिमार और बेचारा बना हुआ
है।
मुख्यमंत्री किसी
मंदिर से बाहर आता है और फिर
उस मंदिर का शुद्धिकरण किया
जाता है....
मुख्यमंत्री व्यवस्था की
दुहाई देता है..।
मंत्री मजे लेता है...।
लानत क्यों न हो ऐसे मुख्यमंत्री
पर जो अपनी रक्षा खुद न कर
सके...। ऐसा
मुख्यमंत्री दस करोड़ लोगों
की रक्षा कैसे कर पाएगा..।
एक मुख्यमंत्री
राज्य के सबसे बड़े अस्पताल
जाता है...।
कुव्यवस्था देखकर अस्पताल
के सबसे बड़े अधिकारी को बुलाता
है... लेकिन
अधिकारी आने से मना कर देता
है...। अधिक
संभावना है कि उस अधिकारी का
कुछ नहीं बिगड़ेगा...
अब बताइए,
क्या आपको कोई रोशनी दिख
रही है???? नहीं
दिखेगी... यहां
सबसे निराशा की बात यह है कि
आम जनता तक उस विनाश के दुष्चक्र
का हिस्सा बन कर रह गई है...
उसे आप निकालना चाहें तो
वो खुद ना निकलें...।
Subscribe to:
Posts (Atom)