Thursday, August 27, 2015
Sunday, August 16, 2015
Wednesday, August 12, 2015
बात तो निकली थी लेकिन बीच में ही रुक गई
बात यूं
ही कुछ शुरू हुई थी। संसद में
सपा सांसद नरेश अग्रवाल चिंता
प्रकट कर रहे थे। सांसदों के
इमेज की चिंता। कह रहे थे कि
मीडिया में उनकी नकारात्म
छवी बनाई जा रही है। मी़डिया
के लोग खुद संसद की कैंटीन में
सस्ती दरों में खाना खाते हैं
फिर उन्हें सांसदों पर उंगली
उठाने का क्या हक है।
इसका मतलब
तो मुझे सिर्फ यह समझ आया कि
जब तू भी नंगा है तो मूझे नंगा
क्यों कह रहा है।
बात आगे
बढ़ी तो उन नेताओं सांसदों की चर्चाएं शुरू हो गईं जो विरोधियों के लिए तूम, तू
और ना जाने क्या क्या प्रयोग
करते हैं।
अब अगर
यही भाषा कोई इनके लिए कह दे
तो उन्हें इमेज की चिंता होने
लगती है।
और फिर
सेलिब्रिटिज की बातें भी आईं।
सोशल मीडिया में सेलिब्रिटिज
को इतनी गालियां क्यों पड़ती
हैं। पत्रकार से लेकर मॉ़डल और अभिनेता तक। अरे भई तूम सांसद तो हो
नहीं, मंत्री भी
नहीं हो। तूम्हारे पास तो कोई
विशेषाधिकार भी नहीं है। तो
कुछ तो उन लोगों को कह लेने दो
जिनके पास कोई माईक नहीं है।
जिनकी बातें मीडिया नहीं
दिखाता। जिनकी बातें संसद
में नहीं होतीं, जिनकी
बातें, लोगों तक
नहीं पहुचती।
तुम तो
अपनी उल्टी कर के निकल लेते
हो, जिनके उपर उल्टियां
करते हो उनकी तो थूक कम से कम
बर्दाश्त करो। तूम क्या बोलते
हो, क्या करते हो।
यह अब बात किसी से छिपी है क्या।
बात आगे
और भी है....
Friday, August 7, 2015
उजाले की चाह में अंधेरों की गुलामी
'बहुत जान है......'
पता नहीं
उम्र का क्या दौर था वो। दूरदर्शन पर जो भी कार्यक्रम आता हो, उसे देखना किसी भी दूसरे कामों से महत्वपूर्ण होता था। उन्हीं
दिनों टीवी पर कालीचरण,
खुदगर्ज और काला पत्थर के
शत्रुघ्न सिन्हा से वास्ता
पड़ा था। मामूली शक्ल का
यह हीरो, चेहरे पर
कटे के निशान के बाद भी इस मासूम
के दिल पर गहरा असर छोड़ गया
था। अमिताभ का सबसे बड़ा फैन
खुद को मानता हूं यह जानते हुए
कि मैं उस शख्स को बिल्कुल
नहीं जानता। लेकिन आज जब तूलना
करता हूं तो कालीचरण ना तो
विजय दिनानाथ चौहान से छोटा
लगा था और ना ही डॉन से।
एक दौर
की समाप्ती
और
जब निंद टूटी तो चारो तरफ अंधेरा
था। शाम में ही नहीं, सुबह
में भी। रात में ही नहीं दिन
में भी। एक हाथ में रौशनी की
किरण नजर आई थी... टोह
लेते-लेते वहां
पहुंचा तो धमाका..।
अंधेरा और गहरा गया।
कुछ दिनों
बाद...
अब
ना तो कालीचरण के लिए वक्त है
और ना ही दीनानाथ चौहान के लिए। दिमाग
में पिताजी के शब्द सिर्फ
इतने, कि बेटा पढ़
ले। कुछ बन जाओगे दो दिन संवर
जाएगा। नहीं तो आंख के आंसू
... से पोछते रह जाओगे
जिंदगी भर।
एक और
दौर!
"बहुद
जान है इस मुजफ्फरपुर में"। 'कालीचरण' को पहली बार पर्दे
से इतर अपनी आंखों के सामने
देखने का मौका मिला। भाषण के
बीच प्रत्येक 30 सेकेंड
पर अपने जैकेट को संवारता
कालीचरण आंखों को भा नहीं रहा
था। जब उसने कहा कि बहुत दम है
इस शहर में तो तालियां तो बजीं
लेकिन वह इस व्यक्ति के लिए
नहीं सिर्फ उस किरदार के लिए
जो अंधेरे से मुक्ति दिलाने
का वादा कर रहा था।
और फिर
एक दिन...
और
फिर एक दिन अंधेरे से मुक्ति
दिलाना का वादा करता ऱौशनी
से नहाया हुआ वह शख्स खुद अंधेरे
की गुलामी करने लगा। अंधेरे
को वह अपना दोस्त बताने लगा।
चारों तरफ घटाटोप अंधेरा। यह
शख्स खुद रौशनी से चौंधियाया
हुआ, अंधेरों की
दुहाई देता नजर आया। तालियां
बजने लगी। रौशनी में डूबा हुआ
शख्स आंखें बंद कर खुद को अंधेरे
का बादशाह समझने लगा। उजाले
तो गुलाम थे ही, अंधेरे पर भी साम्राज्य कायम हो गया।
घटाटोप अंधेरा।
इसके आगे एक लंबे समय के बाद.....
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