Wednesday, August 12, 2015

बात तो निकली थी लेकिन बीच में ही रुक गई


बात यूं ही कुछ शुरू हुई थी। संसद में सपा सांसद नरेश अग्रवाल चिंता प्रकट कर रहे थे। सांसदों के इमेज की चिंता। कह रहे थे कि मीडिया में उनकी नकारात्म छवी बनाई जा रही है। मी़डिया के लोग खुद संसद की कैंटीन में सस्ती दरों में खाना खाते हैं फिर उन्हें सांसदों पर उंगली उठाने का क्या हक है।

इसका मतलब तो मुझे सिर्फ यह समझ आया कि जब तू भी नंगा है तो मूझे नंगा क्यों कह रहा है।


बात आगे बढ़ी तो उन नेताओं सांसदों  की चर्चाएं शुरू हो गईं जो विरोधियों के लिए तूम, तू और ना जाने क्या क्या प्रयोग करते हैं।

अब अगर यही भाषा कोई इनके लिए कह दे तो उन्हें इमेज की चिंता होने लगती है।

और फिर सेलिब्रिटिज की बातें भी आईं। सोशल मीडिया में सेलिब्रिटिज को इतनी गालियां क्यों पड़ती हैं। पत्रकार से लेकर मॉ़डल और अभिनेता तक। अरे भई तूम सांसद तो हो नहीं, मंत्री भी नहीं हो। तूम्हारे पास तो कोई विशेषाधिकार भी नहीं है। तो कुछ तो उन लोगों को कह लेने दो जिनके पास कोई माईक नहीं है। जिनकी बातें मीडिया नहीं दिखाता। जिनकी बातें संसद में नहीं होतीं, जिनकी बातें, लोगों तक नहीं पहुचती।

तुम तो अपनी उल्टी कर के निकल लेते हो, जिनके उपर उल्टियां करते हो उनकी तो थूक कम से कम बर्दाश्त करो। तूम क्या बोलते हो, क्या करते हो। यह अब बात किसी से छिपी है क्या।

बात आगे और भी है....

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