सामा-चकेबा मिथिला का एक बहुत ही अनोखा त्योहार है। भाई-बहन के बीच के स्नेह और समर्पण को दर्शाने वाला यह त्योहार महापर्व छठ के पारण के दिन शुरू होता है। छठ पूजा के अंतिम दिन सुबह में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है उसी शाम से मिथिला क्षेत्र में सामा-चकेबा का त्योहार शुरू होता है।
इस त्योहार में महिलाएं सात दिनों तक सामा-चकेबा, चुगला और दूसरी मुर्तियां बनाकर उन्हें पूजती हैं। लोक गीत गाती हैं, और सामा-चकेबा की कहानियां कहती हैं। पूजा के अंतिम दिन यानि कार्तिक पूर्णिमा की रात में सामा को प्रतिकात्मक रूप से ससुराल विदा किया जाता है। पास के किसी खाली खेत में मुर्तियों का विसर्जन किया जाता है। जिस तरह एक बेटी को ससुराल विदा करते समय, उसके साथ नया जीवन शुरू करने हेतु आवश्यक वस्तुएं दी जाती हैं, उसी तरह से विसर्जन के समय सामा के साथ खाने- पीने की चीजें, कपड़े और दूसरी आवश्यक वस्तुएं दी जाती हैं। महिलाएं विदा गीत ‘समदाओन’ गाती हैं।
इस कहानी में सामा-चकेबा (भाई-बहन) के साथ एक चरित्र है ‘चुगला’। वह झुठी बातें फैलाता है इसलिए इस त्योहार में चुगले का मुंह काला किया जाता है।
कहा जाता है कि सामा भगवान कृष्ण की पुत्री थीं। एक दुष्ट व्यक्ति चुगला ने सामा को अपमानित करने हेतु एक योजना बनाई। उसने सामा के बारे में भगवान कृष्ण को कुछ झुठी बातें बताईं जिसे सच मानकर गुस्से में कृष्ण ने अपनी पुत्री को एक पक्षी में बदल जाने का श्राप दे दिया।
यह बात जब सामा के भाई चकेबा तक पहुंची तो वे बहुत दुखी हो उठे। उनको यह भी पता लगा कि सामा के विरुद्ध झुठी बातें कही गई। सामा को श्राप से मुक्ति दिलाने हेतु चकेबा को कठोर तप करना पड़ा और फिर सामा को श्राप से मुक्ति मिली।