बीत गये संभालने के दिन |
कुछ दिखता क्यों नहीं |
कुछ पाने के लिए कुछ खिलाना पड़ता है |
एक बार चक्र हाथ में आया तो बड़े-बड़े चितपटांग हो गये |
मैं ही हू, धोखा मत खाना |
कभी हम दोस्त थे |
ये हमेशा मेरा कहा मानते थे |
और जब चक्र गया तो लालटेन आ गया |
मैडम तो बस नाम के लिए मुखिया थीं |
ग्वाला हूं, यह तो मेरा पहला काम है |
सब राजनीति है |
मेरे अच्छे दिन |
वीपी सिंह के साथ |
मेरे रंग हजार |
कुर्ताफाड़ होली देश ही नहीं विदेशों में फी फेमस था |
कुछ कहना है क्या??? |
सब विरोधियों की चाल है। मेरा कुछ नहीं होगा |
कार्यकर्ताओं में जोश भरना है |
परिवार को भी समय चाहिए |
यह राजनीति नहीं है |
फिट है बॉस |
ये ना सोचा था कभी |
क्या लालू राजनीति का पटाक्षेप हो गया? इस पर फिर कभी....
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